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अँधेरा / पुष्पिता

158 bytes added, 04:59, 26 मई 2014
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औरत सहती रहती है उजाला और चुप रहती बोलता है चुपचाप शब्द जैसे रात।जिसको दिखना-दिखाना है।
औरत सुलगती रहती है उजाला और शांत रहती खोलता है चुपचाप रहस्य जैसे चिंगारी। जो उसके विरुद्ध हैं।
औरत बढ़ती रहती अद्भुत उजाला निःशब्द मौन होता है सीमाओं ईश्वरीय सृष्टि-शक्ति उस मौन में जीती रहती बाँचती है जैसे नदी। वेदों के सूक्त।
औरत फूलती-फलती है अँधेरा पर सदा भूखी रहती बोलता है अँधेपन की भाषा अपराध के जोखिम डरावनी गूँज सन्नाटे का शोर जैसे वृक्ष। भय के शब्द।
औरत झरती और बरसती रहती है अँधेरा और सदैव प्यासी रहती बोलता है जीवन के मृत होने की जैसे बादल। शून्य भाषा कालिख के रहस्य औरत बनाती है घर अँधेरे की आँखों में पर हमेशा रहती है बेघर मृत्यु के शब्द होते हैं जैसे पक्षी। अँधेरे के ओठों में चीख औरत बुलंद आवाज़ है पर चुप रहती है जैसे शब्द।  औरत जन्मती है आदमी पर गुलाम रहती है सदा अँधेरे की साँसों में जैसे बीज। मृत्यु की डरावनी परछाईं।
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