भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हवा / पुष्पिता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:00, 26 मई 2014 के समय का अवतरण
हवाओं में
होती है आवाज़
अपने समय को जगाने की।
चुप रहने वालों के खिलाफ़
बवंडर उठाने की।
हवाएँ
चुपचाप ही
आँधी बन जाती हैं।
हवाएँ
बिना शोर के
तूफ़ान ले आती हैं।
हवाएँ
हमेशा पैदा करती हैं आवाज़
प्रकृति के पर्यावरण को
हवाएँ पोंछती हैं
अपनी अलौकिक हथेली से।
हवाएँ गूँजती हैं धरती में
जैसे देह में साँस।