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11:00, 26 मई 2014 के समय का अवतरण

हवाओं में
होती है आवाज़
अपने समय को जगाने की।

चुप रहने वालों के खिलाफ़
बवंडर उठाने की।

हवाएँ
चुपचाप ही
आँधी बन जाती हैं।

हवाएँ
बिना शोर के
तूफ़ान ले आती हैं।

हवाएँ
हमेशा पैदा करती हैं आवाज़
प्रकृति के पर्यावरण को
हवाएँ पोंछती हैं
अपनी अलौकिक हथेली से।

हवाएँ गूँजती हैं धरती में
जैसे देह में साँस।