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कनुप्रिया - केलिसखी / धर्मवीर भारती
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20:55, 12 दिसम्बर 2007
और तुम व्याकुल हो उठे हो<br>
धूप में कसे<br>
अथाह समुद्र की उत्ताल, विक्षुब्ध<br>
हहराती लहरों के निर्मम थपेड़ों से-<br>
छोटे-से प्रवाल-द्वीप की तरह<br>
Pratishtha
KKSahayogi,
प्रशासक
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प्रबंधक
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