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{{KKAarti|रचनाकार=KKDharmikRachna}}{{KKCatArti}}<poem> जय लक्ष्मी रमणा, जय लक्ष्मी रमणा।<BR>सत्यनारायण स्वामी जन पातक हरणा॥ जय ..<BR>.रत्न जडि़त सिंहासन अद्भुत छवि राजै।<BR>नारद करत निराजन घण्टा ध्वनि बाजै॥ जय ..<BR>.प्रकट भये कलि कारण द्विज को दर्श दियो।<BR>बूढ़ा ब्राह्मण बनकर कांचन महल कियो॥ जय ..<BR>.दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी।<BR>चन्द्रचूड़ एक राजा तिनकी विपत्ति हरी॥ जय ..<BR>.वैश्य मनोरथ पायो श्रद्धा तज दीन्हों।<BR>सो फल भोग्यो प्रभु जी फिर-स्तुति कीन्हीं॥ जय ..<BR>.भाव भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धरयो।<BR>श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरयो॥ जय ..<BR>.ग्वाल बाल संग राजा वन में भक्ति करी।<BR>मनवांछित फल दीन्हों दीनदयाल हरी॥ जय ..<BR>.चढ़त प्रसाद सवायो कदली फल, मेवा।<BR>धूप दीप तुलसी से राजी सत्य देवा॥ जय ..<BR>.श्री सत्यनारायण जी की आरती जो कोई नर गावै।<BR>भगतदास तन-मन सुख सम्पत्ति मनवांछित फल पावै॥ जय ...</poem>