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"भगवान नटवर जी की जय / आरती" के अवतरणों में अंतर

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भगवान नटवर जी की जय-जय गिरिधारी प्रभु, जय-जय गिरिधारी।<BR>
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भगवान नटवर जी की जय-जय गिरिधारी प्रभु, जय-जय गिरिधारी।
दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हितकारी॥ जय ..<BR>
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दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हितकारी॥  
  
जय गोविन्द दयानिधि, गोवर्धन-धारी।<BR>
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जय गोविन्द दयानिधि, गोवर्धन-धारी।
वंशीधर बनवारी, ब्रज-जन प्रियकारी॥ जय ..<BR>
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वंशीधर बनवारी, ब्रज-जन प्रियकारी॥  
  
गणिका-गीध- अजामिल-गजपति-भयहारी।<BR>
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गणिका-गीध- अजामिल-गजपति-भयहारी।
आरत-आरति-हारी, जय मंगल-कारी॥ जय ..<BR>
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आरत-आरति-हारी, जय मंगल-कारी॥  
  
गोपालक, गीतेश्वर, द्रौपदी-दु:खहारी।<BR>
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गोपालक, गीतेश्वर, द्रौपदी-दु:खहारी।
शबर-सुता-सुखकारी, गौतम-तिय तारी॥ जय ..<BR>
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शबर-सुता-सुखकारी, गौतम-तिय तारी॥  
  
जन-प्रहलाद-प्रमोदक, नरहरि-तनुधारी।<BR>
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जन-प्रहलाद-प्रमोदक, नरहरि-तनुधारी।
जन-मन-रजनकारी, दिति-सुत-संहारी॥ जय ..<BR>
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जन-मन-रजनकारी, दिति-सुत-संहारी॥  
  
टिट्टिभ-सुत संरक्षक, रक्षक मंझारी।<BR>
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टिट्टिभ-सुत संरक्षक, रक्षक मंझारी।
पाण्डु-सुवन-शुभकारी, कौरव-मद-हारी॥ जय ..<BR>
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पाण्डु-सुवन-शुभकारी, कौरव-मद-हारी॥  
  
मन्मथ-मन्मथ मोहन, मुरली-रव-कारी।<BR>
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मन्मथ-मन्मथ मोहन, मुरली-रव-कारी।
वृन्दाविपिन-बिहारी, यमुना-तट-चारी॥ जय ..<BR>
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वृन्दाविपिन-बिहारी, यमुना-तट-चारी॥  
  
अघ-बक-बकी उधारक, तृणावर्त-तारी।<BR>
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अघ-बक-बकी उधारक, तृणावर्त-तारी।
विधि-सुरपति मदहारी, कंस-मुक्तिकारी॥ जय ..<BR>
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विधि-सुरपति मदहारी, कंस-मुक्तिकारी॥  
  
शेष, महेश, सरस्वती गुण गावत हारी।<BR>
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शेष, महेश, सरस्वती गुण गावत हारी।
कल कीरति विस्तारी भक्त-भीति-हारी॥ जय ..<BR>
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कल कीरति विस्तारी भक्त-भीति-हारी॥  
  
नारायण शरणागत, अति अघ अघहारी।<BR>
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नारायण शरणागत, अति अघ अघहारी।
पद-रज पावनकारी चाहत चितहारी॥ जय ..
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पद-रज पावनकारी चाहत चितहारी॥ जय...
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16:31, 30 मई 2014 के समय का अवतरण

अष्टक   ♦   आरतियाँ   ♦   चालीसा   ♦   भजन   ♦   प्रार्थनाएँ   ♦   श्लोक

   
भगवान नटवर जी की जय-जय गिरिधारी प्रभु, जय-जय गिरिधारी।
दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हितकारी॥

जय गोविन्द दयानिधि, गोवर्धन-धारी।
वंशीधर बनवारी, ब्रज-जन प्रियकारी॥

गणिका-गीध- अजामिल-गजपति-भयहारी।
आरत-आरति-हारी, जय मंगल-कारी॥

गोपालक, गीतेश्वर, द्रौपदी-दु:खहारी।
शबर-सुता-सुखकारी, गौतम-तिय तारी॥

जन-प्रहलाद-प्रमोदक, नरहरि-तनुधारी।
जन-मन-रजनकारी, दिति-सुत-संहारी॥

टिट्टिभ-सुत संरक्षक, रक्षक मंझारी।
पाण्डु-सुवन-शुभकारी, कौरव-मद-हारी॥

मन्मथ-मन्मथ मोहन, मुरली-रव-कारी।
वृन्दाविपिन-बिहारी, यमुना-तट-चारी॥

अघ-बक-बकी उधारक, तृणावर्त-तारी।
विधि-सुरपति मदहारी, कंस-मुक्तिकारी॥

शेष, महेश, सरस्वती गुण गावत हारी।
कल कीरति विस्तारी भक्त-भीति-हारी॥

नारायण शरणागत, अति अघ अघहारी।
पद-रज पावनकारी चाहत चितहारी॥ जय...