|संग्रह=सन्धानम / राधावल्लभ त्रिपाठी
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KKCatSanskritRachna
<Poem>
अच्छा हो कि सहसा समाप्त हो जाए मेरा संसार
झर जाएँ सारे के सारे सूखे पत्ते एक साथ
मैंरह मैं रह लूंगा अकेला ही मसान में शंकर की तरह ठूँठ की तरह
नंगा सूखी टहनियों के साथ भस्म कर दिए गए मनोरथों के साथ