"जीवनवृक्ष / राधावल्लभ त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
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अच्छा हो कि सहसा समाप्त हो जाए मेरा संसार | अच्छा हो कि सहसा समाप्त हो जाए मेरा संसार | ||
झर जाएँ सारे के सारे सूखे पत्ते एक साथ | झर जाएँ सारे के सारे सूखे पत्ते एक साथ | ||
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नंगा सूखी टहनियों के साथ भस्म कर दिए गए मनोरथों के साथ | नंगा सूखी टहनियों के साथ भस्म कर दिए गए मनोरथों के साथ | ||
18:49, 17 जून 2014 के समय का अवतरण
KKCatSanskritRachna
अच्छा हो कि सहसा समाप्त हो जाए मेरा संसार
झर जाएँ सारे के सारे सूखे पत्ते एक साथ
मैं रह लूंगा अकेला ही मसान में शंकर की तरह ठूँठ की तरह
नंगा सूखी टहनियों के साथ भस्म कर दिए गए मनोरथों के साथ
क्या हुआ जो नहीं आती है मदविह्वल रमणी
मदिरा के कुल्लों से मुझे सींचने के लिए
क्या हुआ जो रुनझुन करते नूपुर से मंडित अपने चरणों से
सुकुमार प्रहार नहीं करती कोई मेरी जड़ों पर
उससे मेरा कुछ घटने को नहीं है मैं कोयले की तरह काला
अपरिभाषेय सारे संकल्प अपने भीतर समेटे
कपाली की तरह रह लूंगा यहाँ
मैं नहीं चाहता धीरे-धीरे मरना
मैं नहीं चाहता पत्तों और फूलों का एक-एक करके गिरना
अच्छा ही हो कि पास के मसान से आती चिताओं को लपेटे
निगल ही लें मुझें
और मैं राख बनकर बिखरूँ यहीं
अथवा मरूंगा नहीं मैं
मेरी जड़े अभी गड़ी हैं बहुत गहरीं
धरती के भीतर
जहाँ पानी है
मैं फिर खींच लूंगा रस
फिर रच लूंगा नए पत्ते
फिर लहका दूंगा देह पर फूल
नीलम की आभाएँ फिर रच लूंगा मैं
किसी अपने को फूँककर
लौटते हुए लोग
क्षण भर को मेरी छाया में बैठेंगे
और देखेंगे मुझे
हसरत के साथ।