#REDIRECT [[उद्बोधन / गीत विजय के {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=महावीर प्रसाद 'मधुप'|अनुवादक=|संग्रह=माटी अपने देश की / महावीर प्रसाद ‘मधुप’]]'मधुप'}}{{KKCatKavita}}<poem>करो अध्यात्म-सुध का पान।महकने दो जीवन-उद्यान।।रखो मन में न भावना हीन, न समझो तुम अपने को दीन,रहे मुख-मंडल नहीं मलीन,रहो शुभ चिंतन में लवलीन,ईश की बनो श्रेष्ठ संतान।महकने दो जीवन-उद्यान।। न कोई फटके पास विकार,पनपते रहें सदा सुविचार,सभी से हो निश्छल व्यवहार,सतत हो प्राणिमात्र से प्यार,रहे कर्त्तव्यों का ध्रुव-ध्यान।महकने दो जीवन-उद्यान।। न डरना देख समय विपरीत,कभी है हार, कभी है जीत,लौट कर आता नहीं अतीत,निभाना वर्तमान से प्रीतपंथ पर पाँव रहें गतिमान।महकने दो जीवन-उद्यान।। धैर्य का दामन कर में थाम,साधनारत रहना वसु याम,कर्म करते रहना निष्काम,निबल के रक्षक होते राम,न सब दिन होते एक समान।महकने दो जीवन-उद्यान।। भाग्य होता श्रम से अनुकूल,पराश्रित होना भारी भूल,राह में फूल मिलें या शूल,निरंतर चलना है सुखमूल,निशा जाती, दे स्वर्ण-विहान।महकने दो जीवन-उद्यान।। सदा रसना में मधुरस घोल,बोलना सबसे मीठे बोल,मिला मानव-जीवन अनमोल,गँवाना इसे न कौड़ी मोल,यही है उन्नति का सोपान।महकने दो जीवन-उद्यान।। सुझाया जो पुरखों ने पंथ,नियम सिखलाते जो सद्ग्रन्थ,उन्हीं पर श्रद्धा लिए अनन्त,निभाते रहो आयु-पर्यन्त,समझ कर साथी निज भगवान।महकने दो जीवन-उद्यान।। अहर्निश अर्जित करो विवेक,करो सत्कर्मों का अभिषेक,एक हो लगन एक हो टेक,जियो दुनिया में बन कर नेक,सफलता पाकर बनो महान।महकने दो जीवन-उद्यान।।</poem>