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"बदलाव / लक्ष्मीकान्त मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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गांव वाले
 
गांव वाले
 
शहर चले गये।
 
शहर चले गये।
 
विटप तरु
 
दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं था अंध्ड़ का
 
लेकिन वह पास थी
 
नालियों में खर-पातों से साथ बहती हुई
 
बिल्कुल करीब पहुंची थी
 
रेड़ के पौधे की जड़ों में
 
उसकी बस्ती में तूपफान जैसी
 
शैतानी आत्माओं का बोलबाला था
 
स्यारों की रूदन
 
सरसराने लगती थी कानों में
 
बांसों, पुआलों और सूखे पत्तों की खड़खड़ाहटों में
 
बिखरता जा रहा था समूचा वजूद
 
लेकिन वह पास ही थी
 
धरती के अंदर भी/या, ठीक हमारे पार्श्व में
 
जहां छिपे होते हैं भविष्य के कुहरे में बीज
 
वहीं उगा होता है वर्तमान का विटप तरु।
 
 
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12:05, 29 जून 2014 के समय का अवतरण

गांव तक सड़क
आ गई
गांव वाले
शहर चले गये।