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हलवाई की दुकान में घुसते ही दीखे | हलवाई की दुकान में घुसते ही दीखे | ||
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कढाई में सननानाते समोसे | कढाई में सननानाते समोसे | ||
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बेंच पर सीला हुआ मैल था एक इंच | बेंच पर सीला हुआ मैल था एक इंच | ||
− | मेज पर | + | |
+ | मेज पर मक्खियाँ | ||
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चाय के जूठे गिलास | चाय के जूठे गिलास | ||
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बड़े झन्ने से लचक के साथ | बड़े झन्ने से लचक के साथ | ||
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समोसे समेटता कारीगर था | समोसे समेटता कारीगर था | ||
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दो बार निथारे उसने झन्न -फन्न | दो बार निथारे उसने झन्न -फन्न | ||
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यह दरअसल उसकी कलाकार इतराहट थी | यह दरअसल उसकी कलाकार इतराहट थी | ||
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तमतमाये समोसों के सौन्दर्य पर | तमतमाये समोसों के सौन्दर्य पर | ||
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दाद पाने की इच्छा से पैदा | दाद पाने की इच्छा से पैदा | ||
− | मूर्खता से फैलाये मैंने तारीफ में | + | मूर्खता से फैलाये मैंने तारीफ में होंठ |
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कानों तलक | कानों तलक | ||
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कौन होगा अभागा इस क्षण | कौन होगा अभागा इस क्षण | ||
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जिसके मन में नहीं आयेगी एक बार भी | जिसके मन में नहीं आयेगी एक बार भी | ||
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समोसा खाने की इच्छा । | समोसा खाने की इच्छा । |
18:01, 22 दिसम्बर 2007 के समय का अवतरण
हलवाई की दुकान में घुसते ही दीखे
कढाई में सननानाते समोसे
बेंच पर सीला हुआ मैल था एक इंच
मेज पर मक्खियाँ
चाय के जूठे गिलास
बड़े झन्ने से लचक के साथ
समोसे समेटता कारीगर था
दो बार निथारे उसने झन्न -फन्न
यह दरअसल उसकी कलाकार इतराहट थी
तमतमाये समोसों के सौन्दर्य पर
दाद पाने की इच्छा से पैदा
मूर्खता से फैलाये मैंने तारीफ में होंठ
कानों तलक
कौन होगा अभागा इस क्षण
जिसके मन में नहीं आयेगी एक बार भी
समोसा खाने की इच्छा ।