भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उपदेशसाहस्री / उपदेश ४ / आदि शंकराचार्य" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आदि शंकराचार्य |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
<poem> | <poem> | ||
अहंप्रत्ययबीजं यदहंप्रत्ययवत्स्थितम्। | अहंप्रत्ययबीजं यदहंप्रत्ययवत्स्थितम्। | ||
− | + | ::नाहंप्रत्ययवह्न्युष्टं कथं कर्म प्ररोहति॥ | |
दृष्टवच् चेत् प्ररोहः स्यान् नान्यकर्मा स इष्यते। | दृष्टवच् चेत् प्ररोहः स्यान् नान्यकर्मा स इष्यते। | ||
− | + | ::तन्निरोधे कथं तत् स्यात् पृच्छामो वस्तदुच्यताम्॥ | |
देहाद्यारम्भसामर्थ्याज् ज्ञानं सद्विषयं त्वयि। | देहाद्यारम्भसामर्थ्याज् ज्ञानं सद्विषयं त्वयि। | ||
− | + | ::अभिभूय फलं कुर्यात् कर्मान्ते ज्ञानमुद्भवेत्॥ | |
आरब्धस्य फले ह्येते भोगो ज्ञानं च कर्मणः। | आरब्धस्य फले ह्येते भोगो ज्ञानं च कर्मणः। | ||
− | + | ::अविरोधस्तयोर्युक्तो वैधर्म्यं चेतरस्य तु॥ | |
देहात्मज्ञानवज् ज्ञानं देहात्मज्ञानबाधकम्। | देहात्मज्ञानवज् ज्ञानं देहात्मज्ञानबाधकम्। | ||
− | + | ::आत्मन्येव भवेद् यस्य स नेच्छन्नपि मुच्यते॥ | |
</poem> | </poem> |
14:03, 9 जुलाई 2014 के समय का अवतरण
अहंप्रत्ययबीजं यदहंप्रत्ययवत्स्थितम्।
नाहंप्रत्ययवह्न्युष्टं कथं कर्म प्ररोहति॥
दृष्टवच् चेत् प्ररोहः स्यान् नान्यकर्मा स इष्यते।
तन्निरोधे कथं तत् स्यात् पृच्छामो वस्तदुच्यताम्॥
देहाद्यारम्भसामर्थ्याज् ज्ञानं सद्विषयं त्वयि।
अभिभूय फलं कुर्यात् कर्मान्ते ज्ञानमुद्भवेत्॥
आरब्धस्य फले ह्येते भोगो ज्ञानं च कर्मणः।
अविरोधस्तयोर्युक्तो वैधर्म्यं चेतरस्य तु॥
देहात्मज्ञानवज् ज्ञानं देहात्मज्ञानबाधकम्।
आत्मन्येव भवेद् यस्य स नेच्छन्नपि मुच्यते॥