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"मयंक अवस्थी" के अवतरणों में अंतर
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11:13, 18 जुलाई 2014 का अवतरण
मयंक अवस्थी
www.kavitakosh.org/mawasthi
www.kavitakosh.org/mawasthi
जन्म | 25 जून 1964 |
---|---|
उपनाम | मयंक |
जन्म स्थान | जगपद, हरदोई, उत्तर प्रदेश, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
भारतीय रिजर्व बैंक नागपुर में कार्यरत | |
जीवन परिचय | |
मयंक अवस्थी / परिचय | |
कविता कोश पता | |
www.kavitakosh.org/mawasthi |
- तारों से और बात में कमतर नहीं हूँ मैं / मयंक अवस्थी
- मेरी ही धूप के टुकड़े चुरा के लाता है / मयंक अवस्थी
- सादगी पहचान जिसकी ख़ामुशी आवाज़ है / मयंक अवस्थी
- बिखर जाये न मेरी दास्ताँ तहरीर होने तक / मयंक अवस्थी
- जब ख़ुद में कुछ मिला न ख़दो –ख़ाल की तरह / मयंक अवस्थी
- वो कौन है वो क्या है जो इस दिल में छुपा है / मयंक अवस्थी
- चार –सू जो खामुशी का साज़ है / मयंक अवस्थी
- इक चाँद तीरगी में समर रोशनी का था / मयंक अवस्थी
- बैठे हो जिसके ख़ौफ से छुपकर मचान पर / मयंक अवस्थी
- मेरे आगे बड़ी मुश्किल खड़ी है / मयंक अवस्थी
- बचपन में इस दरख़्त पे कैसा सितम हुआ / मयंक अवस्थी
- अगर हवाओं के रुख मेहरबाँ नहीं होते / मयंक अवस्थी
- वही अज़ाब वही आसरा भी जीने का / मयंक अवस्थी
- ख़ुश्क आँखों से कोई प्यास न जोड़ी हमने / मयंक अवस्थी
- क़ैदे- शबे- हयात बदन में गुज़ार के / मयंक अवस्थी
- नींदों के घर में घुस के चुकाये हिसाब सब / मयंक अवस्थी
- हया उतार चुकी है लिबास महफिल में / मयंक अवस्थी
- खुलती ही नहीं आँख उजालों के भरम से / मयंक अवस्थी
- पहले हिल-मिल के बिहीख़्वाह भी हो जाता है / मयंक अवस्थी
- कोई दस्तक कोई ठोकर नहीं है / मयंक अवस्थी
- आज तनक़ीद की लहरों में असीरों की तरह / मयंक अवस्थी
- कभी यकीन की दुनिया में जो गए सपने / मयंक अवस्थी
- मेरी आहों का दीवार पे असर हो शायद / मयंक अवस्थी
- थको न आस के पंछी उड़ान बाक़ी है / मयंक अवस्थी
- उस आसमाँ को शामो-सहर याद किया जाय / मयंक अवस्थी
- धरती पे रश्के-माह से कमतर नहीं हूँ मैं / मयंक अवस्थी
- किरदार खोलती है बयानात की महक / मयंक अवस्थी
- उसे पहनो न पहनो क्या कभी बदरंग लगता है / मयंक अवस्थी
- अधूरा ख़्वाब दिन चढ़ने पे मिट्टी बन ही जाता है / मयंक अवस्थी
- तुम्हारी धूप में फूलों को जब हयात मिली / मयंक अवस्थी
- वही अज़ाब वही आसरा भी जीने का / मयंक अवस्थी
- खुशफहमियों में चूर, अदाओं के साथ –साथ / मयंक अवस्थी
- मेरी ही धूप के टुकड़े चुरा के लाता है / मयंक अवस्थी
- आँखों में बस गया कोई बाँहों से दूर है / मयंक अवस्थी
- सादगी पहचान जिसकी ख़ामुशी आवाज़ है / मयंक अवस्थी
- तुझको सोचूँ तो फिर उस मोड़ पे सिन लगती है / मयंक अवस्थी
- वो सुकूँ है जबसे निकला हूँ उमस भरे मकाँ से / मयंक अवस्थी
- तेरे बयान का सच क्या है जान जाते हैं / मयंक अवस्थी
- वो थोड़ा है मगर काफ़ी ज़ियादा बन के रहता है / मयंक अवस्थी
- तमन्नाओं को जैसे क़ुव्वते -परवाज़ देती है / मयंक अवस्थी
- इसी ख़ातिर तो उसकी आरती हमने उतारी है / मयंक अवस्थी