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"तुम मेरे पास रहो फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर

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मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो<br>
 
मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो<br>
 
जिस घड़ी रात चले<br>
 
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आसमानों का लहू पी कर सियह रात चले<br>
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बैन करती हुई, हँसती हुई, गाती निकले<br>
 
बैन करती हुई, हँसती हुई, गाती निकले<br>
दर्द की कासनी पाज़ेब बजाती निकले<br>
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दर्द के कासनी, पाज़ेब बजाती निकले<br>
जिस घड़ी सीनों में डूबते हुये दिल<br>
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जिस घड़ी सीनों में डूबे हुए दिल<br>
आस्तीनोंमें निहाँ हाथों की रह तकने निकले<br>
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आस्तीनों में निहाँ हाथों की,
आस लिये<br>
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रह तकने लगे, आस लिये<br>
और बच्चों के बिलखने की तरह क़ुल-क़ुल-ए-मय<br>
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और बच्चों के बिलखने की तरह, क़ुल-क़ुल-ए-मय<br>
बहर-ए-नासुदगी मचले तो मनाये न मने<br>
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बहर-ए-नासुदगी मचले तो मनाये न मने<br>
 
जब कोई बात बनाये न बने<br>
 
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जब न कोई बात चले<br>
 
जब न कोई बात चले<br>

08:10, 24 जुलाई 2014 का अवतरण

तुम मेरे पास रहो
मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो
जिस घड़ी रात चले
आसमानों का लहू पी के सियह <ref>काली</ref> रात चले
मर्हम-ए-मुश्क <ref>कस्तूरी मलहम</ref> लिये नश्तर-ए-अल्मास <ref>हीरे की छुरी</ref> चले
बैन करती हुई, हँसती हुई, गाती निकले
दर्द के कासनी, पाज़ेब बजाती निकले
जिस घड़ी सीनों में डूबे हुए दिल
आस्तीनों में निहाँ हाथों की, रह तकने लगे, आस लिये
और बच्चों के बिलखने की तरह, क़ुल-क़ुल-ए-मय
बहर-ए-नासुदगी मचले तो मनाये न मने
जब कोई बात बनाये न बने
जब न कोई बात चले
जिस घड़ी रात चले
जिस घड़ी मातमी, सुन-सान, सियह रात चले
पास रहो
मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो