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"विवशता / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’" के अवतरणों में अंतर
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− | मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार | + | <poem> |
− | पथ ही मुड़ गया | + | मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार |
+ | पथ ही मुड़ गया था। | ||
− | गति मिली, मैं चल पड़ा, | + | गति मिली, मैं चल पड़ा, |
− | पथ पर कहीं रुकना मना था | + | पथ पर कहीं रुकना मना था |
− | राह अनदेखी, अजाना देश | + | राह अनदेखी, अजाना देश |
− | संगी अनसुना | + | संगी अनसुना था। |
− | चाँद सूरज की तरह चलता, | + | चाँद सूरज की तरह चलता, |
− | न जाना रात दिन है | + | न जाना रात दिन है |
− | किस तरह हम-तुम गए मिल, | + | किस तरह हम-तुम गए मिल, |
− | आज भी कहना कठिन | + | आज भी कहना कठिन है। |
− | तन न आया माँगने अभिसार | + | तन न आया माँगने अभिसार |
− | मन ही मन जुड़ गया था | + | मन ही मन जुड़ गया था |
− | मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार | + | मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार |
− | पथ ही मुड़ गया | + | पथ ही मुड़ गया था।। |
− | देख मेरे पंख चल, गतिमय | + | देख मेरे पंख चल, गतिमय |
− | लता भी लहलहाई | + | लता भी लहलहाई |
− | पत्र आँचल में छिपाए मुख- | + | पत्र आँचल में छिपाए मुख- |
− | कली भी मुस्कराई । | + | कली भी मुस्कराई । |
− | एक क्षण को थम गए डैने, | + | एक क्षण को थम गए डैने, |
− | समझ विश्राम का पल | + | समझ विश्राम का पल |
− | पर प्रबल संघर्ष बनकर, | + | पर प्रबल संघर्ष बनकर, |
− | आ गई आँधी सदल- | + | आ गई आँधी सदल-बल। |
− | डाल झूमी, पर न टूटी, | + | डाल झूमी, पर न टूटी, |
− | किंतु पंछी उड़ गया था | + | किंतु पंछी उड़ गया था |
− | मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार | + | मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार |
− | पथ ही मुड़ गया | + | पथ ही मुड़ गया था।। |
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15:24, 5 अगस्त 2014 के समय का अवतरण
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था।
गति मिली, मैं चल पड़ा,
पथ पर कहीं रुकना मना था
राह अनदेखी, अजाना देश
संगी अनसुना था।
चाँद सूरज की तरह चलता,
न जाना रात दिन है
किस तरह हम-तुम गए मिल,
आज भी कहना कठिन है।
तन न आया माँगने अभिसार
मन ही मन जुड़ गया था
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था।।
देख मेरे पंख चल, गतिमय
लता भी लहलहाई
पत्र आँचल में छिपाए मुख-
कली भी मुस्कराई ।
एक क्षण को थम गए डैने,
समझ विश्राम का पल
पर प्रबल संघर्ष बनकर,
आ गई आँधी सदल-बल।
डाल झूमी, पर न टूटी,
किंतु पंछी उड़ गया था
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था।।