भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लिगुआरिया में ख़ामोशी / उंगारेत्ती" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=उंगारेत्ती |संग्रह=मत्स्य-परी का गीत / उंगारेत्ती }} [...)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:30, 30 दिसम्बर 2007 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: उंगारेत्ती  » संग्रह: मत्स्य-परी का गीत
»  लिगुआरिया में ख़ामोशी


हटता हुआ लहरीलेजल का मैदान

दॄश्य से परे अभी तक

सूरज नहाता होगा

उसके कुण्ड में ।


कोमल देह का एक रंग गुज़र जाता है

और अचानक वह खोलती है

अपनी आँखों की अनन्त शान्ति खाड़ी की ओर

चट्टानों की छायाएँ

हो जाती हैं विलय


मधुरता झरती है

आह्लादित नितम्बों से

एक कोमल सुलगन है सच्चा प्यार

लेता हूँ रस उसका

निश्चल सुबह के सेलखड़ी पंख से फैलता हुआ ।