|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}
[[Category:गज़ल]]{{KKCatNazm}}<poem>मैं कोई शे'र न भूले से कहूँगा तुझ पर
फ़ायदा क्या जो मुकम्मल तेरी तहसीन न हो
कैसे अल्फ़ाज़ के साँचे में ढलेगा ये जमाल
हर सनम साज़ ने मर-मर से तराशा तुझको
पर ये पिघली हुई रफ़्तार कहाँ से लाता
तेरे पैरों में तो पाज़ेब पेहनदी पहना दी लेकिन
तेरी पाज़ेब की झनकार कहाँ से लाता