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"फिरंगी चले गए / शील" के अवतरणों में अंतर
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करती है दिन को रात सियासत सुदेश की, | करती है दिन को रात सियासत सुदेश की, | ||
− | बो कर कलह के बीज, फिरंगी चले | + | बो कर कलह के बीज, फिरंगी चले गए । |
भ्रम की भँवर थी, ख़ुश थे, अहिंसा से जय मिली, | भ्रम की भँवर थी, ख़ुश थे, अहिंसा से जय मिली, | ||
− | दुश्मन बने अजीज़, फिरंगी चले | + | दुश्मन बने अजीज़, फिरंगी चले गए । |
आते हैं शील ज़लज़ले, ईमान की क़सम, | आते हैं शील ज़लज़ले, ईमान की क़सम, | ||
− | राहें हुईं ग़लीज़, फिरंगी चले | + | राहें हुईं ग़लीज़, फिरंगी चले गए । |
रहबर ही कर रहे हैं यहाँ, राहज़न के काम, | रहबर ही कर रहे हैं यहाँ, राहज़न के काम, | ||
− | मांगे मिली तमीज़, फिरंगी चले | + | मांगे मिली तमीज़, फिरंगी चले गए । |
हम यौमे-स्वतंत्रता को फ़क़त देखते रहे, | हम यौमे-स्वतंत्रता को फ़क़त देखते रहे, | ||
− | लग़ज़िश लगी लज़ीज़, फिरंगी चले | + | लग़ज़िश लगी लज़ीज़, फिरंगी चले गए । |
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11:04, 30 अगस्त 2014 के समय का अवतरण
करती है दिन को रात सियासत सुदेश की,
बो कर कलह के बीज, फिरंगी चले गए ।
भ्रम की भँवर थी, ख़ुश थे, अहिंसा से जय मिली,
दुश्मन बने अजीज़, फिरंगी चले गए ।
आते हैं शील ज़लज़ले, ईमान की क़सम,
राहें हुईं ग़लीज़, फिरंगी चले गए ।
रहबर ही कर रहे हैं यहाँ, राहज़न के काम,
मांगे मिली तमीज़, फिरंगी चले गए ।
हम यौमे-स्वतंत्रता को फ़क़त देखते रहे,
लग़ज़िश लगी लज़ीज़, फिरंगी चले गए ।