"सबसे अच्छे खत / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
(New page: सबसे अच्छे खत वो नहीं होते जिनकी लिखावट सबसे साफ होती है जिनकी भाषा सब...) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | सबसे अच्छे | + | {{KKGlobal}} |
− | जिनकी लिखावट सबसे | + | {{KKRachna |
+ | |रचनाकार=कुमार मुकुल | ||
+ | |अनुवादक= | ||
+ | |संग्रह=परिदृश्य के भीतर / कुमार मुकुल | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | सबसे अच्छे ख़त वो नहीं होते | ||
+ | जिनकी लिखावट सबसे साफ़ होती है | ||
जिनकी भाषा सबसे खफीफ होती है | जिनकी भाषा सबसे खफीफ होती है | ||
− | वो सबसे अच्छे | + | वो सबसे अच्छे ख़त नहीं होते |
जिनकी लिखावट चाहे गडड-मडड होती है | जिनकी लिखावट चाहे गडड-मडड होती है | ||
− | पर जो | + | पर जो पढ़ी साफ़-साफ़ जाती है |
− | सबसे अच्छे | + | सबसे अच्छे ख़त वो होते हैं |
जिनकी भाषा उबड़-खाबड़ होती है | जिनकी भाषा उबड़-खाबड़ होती है | ||
− | पर भागते-भागते भी जिसे हम | + | पर भागते-भागते भी जिसे हम पढ़ लेते हैं |
− | जिसके | + | जिसके हर्फ़ चाहे धुंधले हों |
− | पर जिससे एक चेहरा | + | पर जिससे एक चेहरा साफ़ झलकता है |
− | + | ||
जो मिल जाते हैं समय से | जो मिल जाते हैं समय से | ||
− | और मिलते ही जिन्हे | + | और मिलते ही जिन्हे पढ़ लिया जाता है |
− | वो | + | वो ख़त सबसे अच्छे नहीं होते |
− | + | सबकी नज़र बचा जिन्हें छुपा देते हैं हम | |
− | सबकी | + | और भागते फिरते हैं जिसकी ख़ुशी में सारा दिन |
− | और भागते फिरते हैं जिसकी | + | |
शाम लैंप की रोशनी में पढते हैं जिन्हें | शाम लैंप की रोशनी में पढते हैं जिन्हें | ||
− | वो सबसे अच्छे | + | वो सबसे अच्छे ख़त होते हैं |
− | + | ||
जिनके बारे में हम जानते हैं कि वे डाले जा चुके हैं | जिनके बारे में हम जानते हैं कि वे डाले जा चुके हैं | ||
− | और जिनका | + | और जिनका इंतज़ार होता है हमें |
और जो खो जाते हैं डाक में | और जो खो जाते हैं डाक में | ||
जिन्हें सपनों में ही पढ पाते हैं हम | जिन्हें सपनों में ही पढ पाते हैं हम | ||
− | वे सबसे अच्छे | + | वे सबसे अच्छे ख़त होते हैं। |
+ | </poem> |
07:03, 30 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
सबसे अच्छे ख़त वो नहीं होते
जिनकी लिखावट सबसे साफ़ होती है
जिनकी भाषा सबसे खफीफ होती है
वो सबसे अच्छे ख़त नहीं होते
जिनकी लिखावट चाहे गडड-मडड होती है
पर जो पढ़ी साफ़-साफ़ जाती है
सबसे अच्छे ख़त वो होते हैं
जिनकी भाषा उबड़-खाबड़ होती है
पर भागते-भागते भी जिसे हम पढ़ लेते हैं
जिसके हर्फ़ चाहे धुंधले हों
पर जिससे एक चेहरा साफ़ झलकता है
जो मिल जाते हैं समय से
और मिलते ही जिन्हे पढ़ लिया जाता है
वो ख़त सबसे अच्छे नहीं होते
सबकी नज़र बचा जिन्हें छुपा देते हैं हम
और भागते फिरते हैं जिसकी ख़ुशी में सारा दिन
शाम लैंप की रोशनी में पढते हैं जिन्हें
वो सबसे अच्छे ख़त होते हैं
जिनके बारे में हम जानते हैं कि वे डाले जा चुके हैं
और जिनका इंतज़ार होता है हमें
और जो खो जाते हैं डाक में
जिन्हें सपनों में ही पढ पाते हैं हम
वे सबसे अच्छे ख़त होते हैं।