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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार मुकुल|अनुवादक=|संग्रह=परिदृश्य के भीतर / कुमार मुकुल}}{{KKCatKavita}}<poem>चिकनी धूल भरी बदली ज्यों शुष्क भुर-भुरी तलुए दो या छायाएं हृदय की कि दो विमान खो ... खो ... जाते बदली में कि ढलान गुरूत्व खिसकाता घाता धंस आता वक्ष रेतीला
थिरता ... आ तटी पर
धाराएं खिसकातीं तली भीरू मन छूता जल कांपता दो पल छटपटाती चेतना की जीभ अतहतह प्राण देते ढकेल धारा मध्य सौंदर्यकामी आत्मा
देती उलीच
सारा भय निरभय ।
1991
</poem>