"गाँधी / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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एक दिन इतिहास पूछेगा | एक दिन इतिहास पूछेगा | ||
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कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था, | कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था, | ||
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जिस समय हिंसा, | जिस समय हिंसा, | ||
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कुटिल विज्ञान बल से हो समंवित, | कुटिल विज्ञान बल से हो समंवित, | ||
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धर्म, संस्कृति, सभ्यता पर डाल पर्दा, | धर्म, संस्कृति, सभ्यता पर डाल पर्दा, | ||
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विश्व के संहार का षड्यंत्र रचने में लगी थी, | विश्व के संहार का षड्यंत्र रचने में लगी थी, | ||
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तुम कहाँ थे? और तुमने क्या किया था! | तुम कहाँ थे? और तुमने क्या किया था! | ||
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एक दिन इतिहास पूछेगा | एक दिन इतिहास पूछेगा | ||
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कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था, | कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था, | ||
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जिस समय अन्याय ने पशु-बल सुरा पी- | जिस समय अन्याय ने पशु-बल सुरा पी- | ||
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उग्र, उद्धत, दंभ-उन्मद- | उग्र, उद्धत, दंभ-उन्मद- | ||
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एक निर्बल, निरपराध, निरीह को | एक निर्बल, निरपराध, निरीह को | ||
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था कुचल डाला | था कुचल डाला | ||
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तुम कहाँ थे? और तुमने क्या किया था? | तुम कहाँ थे? और तुमने क्या किया था? | ||
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एक दिन इतिहास पूछेगा | एक दिन इतिहास पूछेगा | ||
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कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था, | कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था, | ||
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जिस समय अधिकार, शोषण, स्वार्थ | जिस समय अधिकार, शोषण, स्वार्थ | ||
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हो निर्लज्ज, हो नि:शंक, हो निर्द्वन्द्व | हो निर्लज्ज, हो नि:शंक, हो निर्द्वन्द्व | ||
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सद्य: जगे, संभले राष्ट्र में घुन-से लगे | सद्य: जगे, संभले राष्ट्र में घुन-से लगे | ||
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जर्जर उसे करते रहे थे, | जर्जर उसे करते रहे थे, | ||
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तुम कहाँ थे? और तुमने क्या किया था? | तुम कहाँ थे? और तुमने क्या किया था? | ||
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क्यों कि गाँधी व्यर्थ | क्यों कि गाँधी व्यर्थ | ||
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यदि मिलती न हिंसा को चुनौती, | यदि मिलती न हिंसा को चुनौती, | ||
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क्यों कि गाँधी व्यर्थ | क्यों कि गाँधी व्यर्थ | ||
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यदि अन्याय की ही जीत होती, | यदि अन्याय की ही जीत होती, | ||
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क्यों कि गाँधी व्यर्थ | क्यों कि गाँधी व्यर्थ | ||
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जाति स्वतंत्र होकर | जाति स्वतंत्र होकर | ||
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यदि न अपने पाप धोती! | यदि न अपने पाप धोती! | ||
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16:26, 7 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
एक दिन इतिहास पूछेगा
कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था,
जिस समय हिंसा,
कुटिल विज्ञान बल से हो समंवित,
धर्म, संस्कृति, सभ्यता पर डाल पर्दा,
विश्व के संहार का षड्यंत्र रचने में लगी थी,
तुम कहाँ थे? और तुमने क्या किया था!
एक दिन इतिहास पूछेगा
कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था,
जिस समय अन्याय ने पशु-बल सुरा पी-
उग्र, उद्धत, दंभ-उन्मद-
एक निर्बल, निरपराध, निरीह को
था कुचल डाला
तुम कहाँ थे? और तुमने क्या किया था?
एक दिन इतिहास पूछेगा
कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था,
जिस समय अधिकार, शोषण, स्वार्थ
हो निर्लज्ज, हो नि:शंक, हो निर्द्वन्द्व
सद्य: जगे, संभले राष्ट्र में घुन-से लगे
जर्जर उसे करते रहे थे,
तुम कहाँ थे? और तुमने क्या किया था?
क्यों कि गाँधी व्यर्थ
यदि मिलती न हिंसा को चुनौती,
क्यों कि गाँधी व्यर्थ
यदि अन्याय की ही जीत होती,
क्यों कि गाँधी व्यर्थ
जाति स्वतंत्र होकर
यदि न अपने पाप धोती!