भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मोहन! मो नयनन के तारे / स्वामी सनातनदेव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वामी सनातनदेव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
निरबलपै बल अजमावहु तुम, कैसे चरित तिहारे॥3॥
 
निरबलपै बल अजमावहु तुम, कैसे चरित तिहारे॥3॥
 
‘दीनानाथ’ कहावत हो तुम, का यह विरद विसारे।
 
‘दीनानाथ’ कहावत हो तुम, का यह विरद विसारे।
दीन मोन सम तलफत है यह, काहे न लेहु उबारे॥4॥
+
दीन मीन सम तलफत है यह, काहे न लेहु उबारे॥4॥
 
कहा कहों, का तुम नहिं जानहु, अब सब विधि हम हारे।
 
कहा कहों, का तुम नहिं जानहु, अब सब विधि हम हारे।
 
हारे के तो तुम बिनु मोहन! और न कोउ सहारे॥5॥
 
हारे के तो तुम बिनु मोहन! और न कोउ सहारे॥5॥

16:25, 20 नवम्बर 2014 का अवतरण

श्रीकृष्ण के प्रति
राग देवगान्धार, तीन ताल 21.6.1974

मोहन! मो नयनन के तारे।
दरसनकों तरसहिं नित नयना, कहाँ छिपे हो प्यारे!
जुग-जुगसों यह साध सँजोई, पथ पेखत चखहारे।
हाय दई! का भई चूक जो अब लौं नाहिं पधारे॥1॥
विरहानल अति प्रबल प्रानधन! जुग-जुगसों जिय जारे।
कृपा-वारि बरसावहु प्यारे! तरसहिं प्रान हमारे॥2॥
है अति आकुल हियो हाय! हम जनम-जनम पचि हारे।
निरबलपै बल अजमावहु तुम, कैसे चरित तिहारे॥3॥
‘दीनानाथ’ कहावत हो तुम, का यह विरद विसारे।
दीन मीन सम तलफत है यह, काहे न लेहु उबारे॥4॥
कहा कहों, का तुम नहिं जानहु, अब सब विधि हम हारे।
हारे के तो तुम बिनु मोहन! और न कोउ सहारे॥5॥
तारे तुमने जीव अनेकन, हम हि भये क्यों भारे।
तारत-तारत हार गये का माखन चाखन हारे॥6॥