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{{KKCatKavita}}<poem>सोचा करता बैठ अकेले,<br>गत जीवन के सुख-दुख झेले,<br>दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!<br>ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!<br><br>
नहीं खोजने जाता मरहम,<br>होकर अपने प्रति अति निर्मम,<br>उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!<br>ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!<br><br>
आह निकल मुख से जाती है,<br>मानव की ही तो छाती है,<br>लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!<br>ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!<br><br/poem>
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