"मन / राजा पुनियानी" के अवतरणों में अंतर
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21:18, 25 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
1.
गाँठ पड़ने का डर है
फिर भी वह किसी को बताती नहीं
एकदम से बता नहीं पाती
मन की बात
जीवन की एक सच्चाई है
अच्छी तरह से पता है उसे --
कि बात कहने पर भी टीसती है मन में
नहीं कहने पर भी
वह सोचती है
छोड़ो -- पड़नी है तो पड़े गाँठ
गाँठों में गाँठ बन कर रह जाए जीवन
उस के बन्द मन के बक्से में
क्या हो सकता है
पता है किसी को ?
2.
एक रात
तालाब में उतरा बादल
वह रात
निर्वाण की एक सुन्दर रात थी
तालाब में उतरे बादल में
छिपा था
सफ़ेद गुलाब-सा एक चाँद
तालाब के एक टुकड़े में चाँद का चेहरा है
जिसे देख किनारे के पेड़ पर बैठी कोयल
कविता की तरह कुछ बोलती रहती
पता है मुझे -- नहीं दे पाऊँगा
पर मन ही मन
तालाब का एक टुकड़ा चाँद तो
मैं तुम्हें कब का सौगात में दे चुका हूँ
मूल नेपाली से अनुवाद : कालिका प्रसाद सिंह