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दीनानाथ अशंक

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{{KKRachna
|रचनाकार=दीनानाथ अशंक
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|संग्रह=
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{{KKCatDoha}}KKParichay<poem>|चित्र=काने काने ही जहाँ, हों एकत्र अनेक।|नाम=दीनानाथ अशंकअच्छा है तुम भी वहाँ, आँख मीच लो एक।।11।।|उपनाम=|जन्म=होता है आपत्ति में, जैसा सविधि सुधार।|जन्मस्थान=सुख में हो सकता नहीं, वैसा किसी प्रकार।।12।।|मृत्यु=|कृतियाँ=घर को समझो सर्वदा, कर्म क्षेत्र प्रधान।|विविध=घर से बन को भागते, कायर ही भयमान।।13।।|जीवनी=[[दीनानाथ अशंक / परिचय]]|अंग्रेज़ीनाम=Deenanath Anshakकाम क्रोध लोभादि का, करे उचित उपयोग।|shorturl=शुद्ध संखिया आदि क्या, हरते नहीं सुरोग।।14।।|gadyakosh=|copyright=होती है आलस्य से, मति अवश्य ही नीच।}}कीड़े पड़ते हैं स्वतः, दूषित जल के बीच।।15।।{{KKCatDohakaar}}* [[दोहा / भाग 1 / दीनानाथ अशंक]]करे शील की पालना, जो सदैव सविवेक।* [[दोहा / भाग 2 / दीनानाथ अशंक]]वही सनातन सौख्य का, अधिकारी है एक।।16।।* [[दोहा / भाग 3 / दीनानाथ अशंक]]* [[दोहा / भाग 4 / दीनानाथ अशंक]]यदि निज आत्मा के निकट, निरपराध हैं आप।* [[दोहा / भाग 5 / दीनानाथ अशंक]]तो कोई भी आप को, लगा न सकता पाप।।17।।* [[दोहा / भाग 6 / दीनानाथ अशंक]]* [[दोहा / भाग 7 / दीनानाथ अशंक]]कार्य सिद्धि करती नहीं, सम्पद की परवाह।* [[दोहा / भाग 8 / दीनानाथ अशंक]]वह तो होती है विवश, देख ओज उत्साह।।18।। घबराते हैं चित्त में, जो आपत्ति निहार।* [[दोहा / भाग 9 / दीनानाथ अशंक]]वे मनुष्य के रूप में, हैं अवश्य ही स्यार।।19।। नारी के प्रति आर्यजन, रखते भाव अनूप।गिनते उसको शारदा, शक्ति रमा का रूप।।20।।<* [[दोहा / भाग 10 /poem>दीनानाथ अशंक]]
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