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"धुन लगे दिन / मुत्तुलक्ष्मी" के अवतरणों में अंतर
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आधी राह सॆ लौटने का | आधी राह सॆ लौटने का |
11:35, 2 जनवरी 2015 के समय का अवतरण
दर्रा सा बन गया हैं
आधी राह सॆ लौटने का
हर दफा |
हॊता हैं भूलॊ का सामना
और टुकड़ों मॆ मिली
कामयाबी कॆ साथ
वापस भॆजॆ गए
अंतहीन
जीवन के लेखे |
बारंबार के आवागमन के बावजूद
खड्डॊ और टीलों की
वाकफियत काम नहीं आती
आड़े खड़े हैं रोड़े बनकर
मदद के लिए ले गए साधन |
कांच की दीवार पर
शोर भरी दस्तक के साथ
राह की खोज
गांठ खोलते खोलते
बढते जाते हैं रहस्य
महीनो और संवत्सरों को
बेरहमी से
सोख रहे दिनों में शांति
तूफान के केंद्र की मानिंद
अनुवाद डॉ. एच. बालसुब्रहमण्यम