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सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria

27,644 bytes added, 14:45, 30 जून 2008
==Problems Reported==
 
प्रिया सुमित,
 
मेरे ख़याल से आपकी समस्या का समाधान ललित जी कर चुके है| और कोई प्रश्न हो तो बेहिचक बताये|
 
[[सदस्य:Pratishtha|प्रतिष्ठा]] १९:१४, २८ अप्रैल २००८ (UTC)प्रतिष्ठा
 
==वर्तनी==
प्रिय सुमित जी,
कुछ ऎसा हुआ कि मैंने दो बार वर्तनी के सवाल पर आपको अपना उत्तर लिखा, लेकिन दोनों ही बार उसे Save नहीं कर पाया और मैं इतना ज़्यादा व्यस्त रहता हूँ कि इस बेकार की बहस में आपके साथ समय नहीं ख़राब करना चाहता था। कौन कहता है कि लोग ञ उच्चारना ही नहीं जानते। मैं तो इसे बड़ी ही सहजता से उच्चार लेता हूँ। दरअसल
हिन्दी को सरल बनाने के प्रयास हो रहे हैं जो एक सही नीति है। हिन्दी सरल होगी तो वह आसानी से पहले राष्ट्रीय भाषा और फिर विश्व भाषा बन जाएगी। इसीलिए नई नीति के अनुसार भारत सरकार भी इस बात पर ज़ोर दे रही है कि सभी अनुनासिकों की जगह अनुस्वार लगना चाहिए। इस नीति से अंशत: असहमत होते हुए भी मैं इससे सहमत हूँ। आपने अपने पत्र में जो तर्क दिए हैं वे खोखले तर्क हैं क्योंकि बात किन्हीं दो-चार शब्दों की नहीं हो रही है, बात
उस प्रवृत्ति की हो रही है जो आजकल चल रही है और जिस पर चलकर ही हिन्दी का आगे विकास होने जा रहा है। आप अगर 'अण्डा' बोल लेते हैं, इसका मतलब यह नहीं की सारा भारत उसे 'अण्डा' कहता है। भारत में तो लोग उसे 'अंडा' ही कहते हैं। क्या आप डण्डा, पण्डा, भण्डा,रण्डी, चण्डी, अरण्डी, खण्ड, प्रचण्ड ही बोलते हैं और ऎसे ही इन्हें लिखते हैं? वास्तव में ये ही सही शब्द हैं । क्या आप रम्भा, खम्भा,चम्बल, कम्बल, सम्बल ही लिखते हैं?
गुंजन,भंजन, अंजन, मंजन, निरंजन ही क्यों लिखना चाहते हैं आप? इन शब्दों को भी ञ लगा कर लिखिए।
मैं बात प्रवॄत्ति की कर रहा हूँ कि न कि सिर्फ़ दो-चार शब्दों की। और इस बहस को यहीं विराम दे रहा हूँ। इसका कारण यह है कि मेरे पास बहुत सीमित समय होता है जो मैं कविता कोश और गद्य कोश को देना चाहता हूँ। आप अपना ई. मेल पता लिखें या मुझ से मेरे ई.मेल पते पर सम्पर्क करें, मैं आपको इस सम्बन्ध में बहुत-सी सामग्री भेज दूंगा। मेरा पता है: aniljanvijay@gmail.com
आशा है, आप परिस्थिति को समझेंगे और नाराज़ नहीं होंगे। मैं, सुमित जी, मास्को रेडियो में अनुवाद का काम करता हूँ, मास्को विश्वविद्यालय में हिन्दी साहित्य पढ़ाता हूँ । सप्ताह में १८ घंटे। पढ़ाने के लिए ख़ुद भी बहुत पढ़ना पड़ता है। बी.ए.-एम.ए. के छात्रों को आप चरका नहीं दे सकते हैं। वे सभी आप ही की तरह बहुत होनहार और शार्प होते हैं। इसके अलावा मैं दो-दो व्यवसाय भी करता हूँ और मास्को में कई संस्थाओं का सदस्य भी हूँ। मास्को में अकेला ऎसा व्यक्ति हूँ जो हिन्दीभाषी है और ठीक-ठाक हिन्दी जानता है। इस कारण से रूस के हिन्दी विद्वान भी मुझ से सलाह-मश्विरा करने में मेरा बहुत समय खा लेते हैं। मैं कविताएँ और लेख आदि भी लिखता हूँ, इसलिए उसके लिए भी समय चाहिए। केवल अपनी व्यस्तताओं के कारण ही मैं आपसे बेकार की बहस नहीं करना चाहता हूँ। बस इतना ही कहना है। शुभकामनाओं सहित
सादर
 
पुनश्च : हमने यह तय किया है कि अनुस्वार ठीक करने का काम धीरे-धीरे ही करना है। एकसाथ एक ही सप्ताह में या एक ही झोंक में यह काम करने का समय कविता-कोश टीम में से किसी के पास नहीं है। हाँ, अगर यह काम आप पूरी तरह से अपने ज़िम्मे लेना चाहें तो टीम के सभी सदस्य आपके प्रति आभारी रहेंगे।
सादर
 
'''--[[सदस्य:अनिल जनविजय|अनिल जनविजय]] मास्को समय १८:१५, २८ अप्रैल २००८ (UTC)''''
 
==मजाज़==
प्रिय सुमित जी,
मैं समझ गया था कि लिंक लाल क्यों है। पर उस समय जल्दी में था इसलिए सोचा कि यह काम बाद में करूंगा। अब आपने कर दिया, आभारी हूँ आपका। मैंने जो कविताएँ शामिल की हैं वे 'आहंग' से ही हैं। सारी कविताएँ आधी-अधूरी हैं।
 
पूरी कविताएँ देवनागरी में उपलब्ध नहीं हैं। अगर उर्दू में कहीं उपलब्ध हों और आप उन्हें देवनागरी में ट्रांसफ़ार्म कर सकें तो कृपया आप ही ऎसा कर दें चूँकि मैं यह नहीं जानता हूँ कि कम्प्यूटर पर ये सब काम कैसे किए जाते हैं। मैं तो जो देवनागरी में उपलब्ध है, उसी को टाईप कर रहा हूँ। 'आहंग' के अलावा भी मजाज़ की ढेर सारी और कविताएँ हैं, वे अलग से बाद में मुख्य पन्ने पर डाल देंगे।
 
surname को हिन्दी में हम 'कुलनाम' कहते हैं। इसलिए उपनाम का मतलब संभवत: 'तख़ल्लुस' ही होना चाहिए।
लेकिन मजाज़ को मजाज़ ही रहने दें तो अच्छा रहेगा क्योंकि ग़ालिब,निराला, नागार्जन, त्रिलोचन, बच्चन आदि सब उपनाम ही हैं, लेकिन समय के साथ-साथ ये इन कवियों के मुख्य नाम हो गए। इसलिए इन नामों को अलग से चिन्हित करने की कोई ज़रूरत नहीं है। उपनाम छद्मनाम नहीं है। छ्द्मनाम तो जासूसों और चोर-डकैतों के होते हैं और अपनी पहचान छुपाने के लिए रखे जाते हैं। कवि प्राय: वे नाम स्वीकार लेते हैं, जो ख़ुद उन्हें पसन्द होते हैं और फिर वही नाम हमेशा के लिए उनकी पहचान बन जाते हैं। यह काम आम तौर पर कवि-लेखक अपनी विशिष्टता को दर्शाने के लिए भी करते हैं ।
 
सुपरस्क्रिप्ट में संख्या लिखना मुझे आता नहीं है। अगर यह काम करना मुझे सिखा दें तो मैं आभारी रहूंगा। 'आज की रात' में इस दृष्टि से आपने अच्छा काम किया है। लेकिन यह कविता कोश के मानकों के अनुरूप है या नहीं, यह तो ललित जी ही बता सकेंगे। हमारे जनरल तो वही हैं। हम तो सिपाही हैं। पीछे-पीछे चलने वाले और आगे-आगे लड़ने वाले।
 
'ऎ' की बीमारी स्क्रिप्ट में ही है। मैं इसे हमेशा या बार-बार ठीक करने के लिए कुछ विशेष प्रयास नहीं कर पाता। जैसा है, चल रहा है। राम भरोसे।
 
सादर
'''--[[सदस्य:अनिल जनविजय|अनिल जनविजय]] मास्को समय १७:४५, १८ अप्रैल २००८ (UTC)''''
 
==योजना==
आदरणीय सुमित जी,
 
चंद्र बिंदु और इसके अलावा भी जो वर्तनी की ग़लतियाँ हैं -उन्हें दूर करने के सम्बंध में मैं जल्द ही कुछ करूंगा। इसके बारे में योजना मैं प्रतिष्ठा के साथ मिलकर इस सप्ताहांत तक बना लूँगा।
 
सादर
'''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] १९:३९, १७ अप्रैल २००८ (UTC)'''
 
==चंद्र बिंदु==
आदरणीय सुमित जी,
 
आपकी बात मैनें पढी़। साँचा बनाने और उसे प्रयोग करने और फिर उसे बाद में हटाने में काफ़ी बेज़ा काम करना पडेगा। मैं इसके लिये कोई दूसरी तरकीब सोचूंगा।
 
वर्तनी मानक वाले पन्ने और योगदान कैसे करें नामक पन्ने में आपके सुझाव शामिल कर लिये जाएंगे।
 
धन्यवाद
 
'''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] १९:५८, १६ अप्रैल २००८ (UTC)''''
 
==
 
आदरणीय सुमित जी, नमस्कार, देर से उत्तर देने के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ।
 
१) आपका नाम "कुछ करिए!" पन्ने पर क्यों जोड़ा गया: कविता कोश टीम अपनी साप्ताहिक सभा में कोश के लिये योजनाएँ तय करती है और ऐसे कई काम किये जाते हैं जिनके पीछे के कारण बाकि लोगो को उतने सीधे-सीधे स्पष्ट नहीं होते। कविता कोश में योगदानकर्ता बहुत कम हैं -लेकिन जितने भी हैं उनमें से आपका योगदान हाल ही में उल्लेखीय रहा है। चाहे आपने २ बदलाव किये हों (कविता कोश में योगदान बदलावों की संख्या से मापा जाता है) -लेकिन यदि बाकी लोगो ने २ बदलाव भी नहीं किये हों तो आपका योगदान उल्लेखनीय अपने आप हो जाता है। आप विनम्र हैं -इसीलिये अपना नाम इस पन्ने से हटाने के लिये आपने कहा है। लेकिन यह नहीं किया जा सकेगा क्योंकि इसके पीछे कुछ योजनागत कारण हैं।
 
२) यह तो काफ़ी समय पहले स्पष्ट हो चुका है कि आपका भाषा ज्ञान काफ़ी अच्छा है और मेरे भाषा ज्ञान से तो कहीं बेहतर है। मेरा भाषा ज्ञान वाकई बहुत ख़राब है। इसीलिये मुझ से बहुत ग़लतियाँ होती हैं। आशा है कि आप हमेशा कि तरह इन ग़लतियो की ओर इंगित कर कोश को बेहतर बनाने में हमारी सहायता करते रहेंगे।
 
३) मैं अनिल जी और प्रतिष्ठा की बात से सहमत हूँ। शब्द ऐसे लिखे जाने चाहिये जिससे कि वही अर्थ प्रेषित हो जो कि लिखने वाला प्रेषित करना चाहता है। आशा है कि आप मेरे वार्ता पन्ने पर लिखे अपने शब्द बदल लेंगे ताकि आगे और किसी को वही ग़लतफ़हमी न हो जो हम सभी कि हुई है।
 
४) चंद्रबिन्दुओं को बदलने के बारे में आप जिस नीति के बारे में सोच रहे हैं -उसके बारे में हमें बताइये... यदि आपकी नीति / योजना टीम को सही लगी तो इस पर ज़रूर अमल किया जाएगा।
 
सादर
 
'''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] २१:२३, १५ अप्रैल २००८ (UTC)'''
 
 
 
 
प्रिय सुमित जी,
मैंने आपको जो सम्बोधन किया था, उस पर आपकी सफ़ाई पढ़ी। मेरा यह मानना है कि जब आप कुछ कहते या लिखते हैं तो आपकी भाषा इतनी स्पष्ट होनी चाहिए कि कोई दूसरा अर्थ उन शब्दों का न निकले । हिन्दी में 'वो' सर्वनाम किसी एक व्यक्ति के लिए प्रयोग में आता है और यह 'वह' का बिगड़ा हुआ रूप है जो बोलचाल में ही
प्राय: इस्तेमाल किया जाता है। बहुवचन के लिए(यानी 'ज्ञानपीठ वालों'के लिए)हिन्दी में जिस सर्वनाम का उपयोग
किया जाना चाहिए वह 'वे' होगा । शायद इसी कारण से और जिस पन्ने की ओर आपने इंगित कर रखा था, उसी वज़ह से यह ग़लतफ़हमी हुई, अब आगे से कुछ भी लिखते हुए ख़याल रखियेगा।
 
जहाँ तक चन्द्रबिन्दु को सुधारने की जो ज़िम्मेदारी आप लोग ले रहे हैं, उसके लिए मैं आपके प्रति एडवांस में आभार व्यक्त करता हूँ क्योंकि यह बड़ा काम है। अगर आप जैसी लगन हम सब में हो, तो हिन्दी का कल्याण ही होगा । सादर ।
'''--[[सदस्य:अनिल जनविजय|अनिल जनविजय]] १८:२६, १३ अप्रैल २००८ (UTC)''''
 
 
जरूर, हम सब मिलकर इस चंद्रबिंदु को सुधर देंगे।
 
एक निशान को दूसरे निशान में बदलने के लिए तो ख़ास लियाकत नहीं चाहिए किंतु हर जगह सही निशान पता होना भी तो ख़ास लियाकत है, जो मुझे अभी सीखना बाकी है :)
 
[[सदस्य:Pratishtha|प्रतिष्ठा]] १३:४२, १४ अप्रैल २००८ (UTC)
 
प्रिय सुमित,
 
आपको ऐसा क्यों लगता है की "कुछ करिए" में आपकी फ़ालतू तारीफ़ है| आपने कार्य तो किया है| और प्रूफ़-रीडिंग भी की है| चाहे वो ख़ुद के जोड़े पन्नों की ही हो|
 
जहाँ तक मेरी बात है, भाषा का ज्ञान मुझे अधिक नहीं है| अपने तुच्छ ज्ञान के साथ मैं कुछ कार्य करती हूँ तो प्रयास यही होता है कि "नहीं करने से तो अच्छा है कि जितना मैं कर सकती हूँ उतना तो करूँ|" मैं आपकी तरह तीव्र नहीं हूँ, मुझे भाषा सीखने में समय लगता है, किंतु कोशिश करुँगी कि आगे से कोई ग़लती न हो|
 
सादर,
 
[[सदस्य:Pratishtha|प्रतिष्ठा]] १३:०९, १४ अप्रैल २००८ (UTC)
 
 
 
प्रिय सुमित जी,
आप हिन्दी प्रेमी हैं, हिन्दी के भविष्य को लेकर चिन्तित रहते हैं, प्रूफ़-रीडिंग को लेकर परेशान रहते हैं, कविता-कोश में महत्त्वपूर्ण योग दे रहे हैं, हम सब लोगों की ग़लतियाँ पकड़ कर हमें बताते हैं और मैं हमेशा आश्चर्यचकित होता हूँ, आपकी यह सक्रियता देख-देख कर। हमेशा सोचता हूँ-- देखो, कितना होनहार लड़का है। लेकिन भाई सुमित जी, कुछ बातें ऎसी भी हैं जिन्हें लेकर मुझे अब आपको टोकने की ज़रूरत आ पड़ी है। आपने आज ही जो चिट्ठी ललित जी को 'सदस्य वार्ता' के अन्तर्गत भेजी है, मुझे लगता है कि आप उसमें शालीनता की सीमाएँ पार कर गए हैं।
हमारे कविता-कोश के एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और मेरे ख़याल से सबसे वयोवृद्ध सदस्य के लिए आपने जिस शब्द का उपयोग किया है, मुझे उस शब्द पर गहरी आपत्ति है। हमें कोई भी टिप्पणी करते हुए शिष्टाचार पर पूरा ध्यान देना चाहिए और अपने व्यवहार में विनम्रता का उपयोग करना चाहिए। अपने अति उत्साह में या अपने ज्ञान की श्रेष्ठता बघारने में इतना मतान्ध नहीं हो जाना चाहिए कि हम किसी दूसरे के सम्मान को चोट पहुँचाएँ। आप युवा हैं और कम्प्यूटर का आपका ज्ञान हमसे श्रेष्ठ है, इसके लिए हम आपके प्रशंसक हैं। हम तो, सुमित भाई अभी सीख ही रहे हैं।
हिन्दी भी हमने हिन्दी में काम कर-कर के ही सीखी है और अभी भी सीख रहे हैं। हिन्दी-सर्वज्ञ तो हम अभी भी नहीं बने हैं। ग़लतियाँ सबसे होती हैं। बहुत से शब्दों को ग़लत ढंग से लिखने की हम लोगों को आदत पड़ गई है। वह आदत धीरे-धीरे ही छूटेगी। यह भी हो सकता है कि न छूटे। आप हमारी ग़लतियों की तरफ़, हमारे अज्ञान की तरफ़ इंगित करते हैं, हम सभी सदस्य इसके लिए आपके प्रति हमेशा हृदय से आभार व्यक्त करते हैं। लेकिन भाई सुमित जी, किसी सदस्य के प्रति आगे से अशिष्ट और भौंडी भाषा का उपयोग आप नहीं करेंगे, इतनी आशा तो हम भी आपसे कर ही सकते हैं। आशा है, आप मेरी इन बातों का बुरा नहीं मानेंगे। आपका पत्र पढ़कर मेरे मन में जो विचार तत्काल आए हैं, उनसे आपको अवगत करवाना भी मैं अपना कर्त्तव्य समझता था, बस इसीलिए इतना-कुछ लिख गया हूँ। आप स्वस्थ-प्रसन्न होंगे। हार्दिक मंगलकामनाओं के साथ...।
सादर
'''--[[सदस्य:अनिल जनविजय|अनिल जनविजय]] २०:३०, १३ अप्रैल २००८ (UTC)''''
 
 
सुमित जी,
 
प्रतिदिन मुझे अपने अज्ञानी होने के प्रमाण मिलते रहते हैं। सो जब आपने कहा कि मुझे हिन्दी की पूरी जानकारी नहीं है तो मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। हालाँकि आपका बताया हुआ alt+shift+\ वाला तरीका मेरे कम्प्यूटर पर काम नहीं करता (मैं Windows XP +Firefox+Baraha का प्रयोग करता हूँ)
 
सादर
 
'''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] ०८:४२, २० मार्च २००८ (UTC)''''
 
 
मार्गदर्शन के लिये शुक्रिया सुमित जी। लेकिन जहाँ तक आपके द्वारा "रोना" शब्द प्रयोग करने की बात है -आपको बताना चाहूँगा कि ग्राफ़िक डिजाइनर की ज़रूरत कोश को केवल "स्किन" बदलने में सहायता करने के लिये नहीं है। एक डिज़ाइनर रंगो और चित्रों का बेहतर तालमेल कर सकता है। यदि कुछ छोटे-छोटे "आइकन" जैसे उपयुक्त ग्राफिक मिल जाएँगे तो पन्ने और अधिक सुन्दर लगने लगेगें। टैम्प्लेट्स डिज़ाइन में भी एक डिज़ाइनर सहायता कर सकता है। कविता कोश का लोगो भी बेहतर बनाया जा सकता है। सम्मान चक्रों का भी डिज़ाइन करने की आवश्यकता है। ये सब ग्राफ़िक्स जल्दी-जल्दी में बस काम चलाने के लिये बनाये गये हैं। डिज़ाइनर का "रोना" नहीं है -पर यदि कोई सदस्य डिज़ाइनर हो और कुछ सहायता कर सके तो कोई बुराई नहीं है। ये सब छोटे-छोटे काम हैं और इनमें अधिक समय नहीं लगता।
[[सदस्य:Pratishtha|प्रतिष्ठा]] ०३:२६, २३ फरवरी २००८ (UTC)
 
== ==
bhaai sumit jii'
vartnii thiik karne kaa kaam mai baad men karungaa kyonkii philhaal jis computer par bithaa hun usmen Devnaagrii font nahin hai.
saadar
anil
== ==
priya Sumit jii,
aapko phir se Kavita kosh par dekh kar khushi hui. haardik svaagat hai aapkaa.
kiraayedaar kavitaa maine dekh lii hai aur mere khyaal se vahaan sab Thiik hii hai.
saadar
anil janvijay
 
==अनिल पाण्डेय =
 
Priya Sumit,
 
Aapne "अनिल पाण्डेय" ji ka naam badalkar "अनिल पांडेय" kar kiya hai. Kisi bhee lekhak ka naam sadev waise hi likha jata hai jaise wo likhak khud likhata hai. Ham usame parivartan nahee kar sakate. Chahe wah KK ke manako ke anuroop na ho. Hamare manak sirf kavitao ke liye hai.
 
saadar,
Pratishtha