|रचनाकार=कैफ़ी आज़मी
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तुम ख़ुदा हो <brpoem>ख़ुदा के बेटे हो'''इब्ने-मरियम<brref>या फ़क़त अमन के पयमबर हो<br>य किसी मरियम का हसीं तखय्युल हो<br>जो भी हो मुझ को अच्छे लगते हो<br>मुझ को सच्चे लगते हो<br>बेटा अर्थात ईसा मसीह<br/ref>'''
इस सितारे में जिस में सदियों सेतुम ख़ुदा हो ख़ुदा के बेटे होया फ़क़त<brref>झूठ और किज़्ब का अंधेरा हैकेवल<br/ref>इस सितारे में जिस को हर रुख़ सेअम्न<brref>शांति</ref> के पयंबर<ref>अवतार</ref> होरंगती सरहदों ने घेरा हैया किसी का हसीं तख़य्युल<brref>सुन्दर कल्पना<br/ref>होजो भी हो मुझ को अच्छे लगते होजो भी हो मुझ को सच्चे लगते हो
इस सितारे मे, न में जिस की आबादीमें सदियों सेझूठ और किज़्ब<brref>अमन बोती है जंग काटती झूठ</ref> का अंधेरा हैइस सितारे में जिस को हर रुख़<brref>तरफ़<br/ref>सेरंगती सरहदों ने घेरा है
रात पीती है नूर मुखडो का<br>इस सितारे में, न जिस की आबादीसुबह सीनों का ख़ून चाटती अम्न बोती है जंग काटती है<br><br>
तुम न होते तो जाने क्या होता<br>रात पीती है नूर मुखड़ों कासुबह सीनों का ख़ून चाटती है
तुम न होते तो इस सितारे में<br>देवता राक्षस ग़ुलाम इमाम<br>पारसा रिंद रहबर रहज़न<br>बराह्मन शैख़ पादरी भिक्षु<br>सभी होते मगर हमारे लिये<br>कौन चढता ख़ुशी से सूली पर<br><br>जाने क्या होता
झोंपडों तुम न होते तो इस सितारे में घिरा ये वीरानादेवता राक्षस ग़ुलाम इमामपारसा<brref>मछलियाँ दिन में सूख़ती हैं जहाँपवित्र<br/ref>बिल्लियाँ दूर बैठी रहती हैंरिंद<brref>और ख़ारिशज़दा से कुछ कुत्तेशराबी<br/ref>लेटे रहते हैं बे-नियाज़ानारहबर<brref>दम मरोड़े के कोई सर कुचलेमार्गदर्शक<br/ref>काटना क्या ये भोँकते भी नहींरहज़न<brref>लुटेरा<br/ref>बिरहमन शैख़ पादरी भिक्षुसभी होते मगर हमारे लियेकौन चढता ख़ुशी से सूली पर
और जब वो दहकता अंगारा<br>झोंपडों में घिरा ये वीरानाछन से सागर मछलियाँ दिन में डूब जाता है<br>तीरगी ओढ लेती है दुनिया<br>कश्तियाँ कुछ किनारे आती सूख़ती हैं<br>भांग गांजा चरस शराब अफ़ीम<br>जो भी लायें जहाँ से भी लायें<br>दौड़ते बिल्लियाँ दूर बैठी रहती हैं इधर और ख़ारिशज़दा से कुछ साये<br>कुत्तेऔर सब कुछ उतार लाते लेटे रहते हैंबे-नियाज़ाना<brref>निश्चिंत<br/ref>दम मरोड़े के कोई सर कुचलेकाटना क्या ये भोँकते भी नहीं
गाड़ी जाती और जब वो दहकता अंगाराछन से सागर में डूब जाता है अदल की मीज़ान<br>जिस का हिस्सा उसी को मिलता तीरगी ओढ लेती है<br><br>दुनियाकश्तियाँ कुछ किनारे आती हैंभांग गांजा चरस शराब अफ़ीमजो भी लायें जहाँ से भी लायेंदौड़ते हैं इधर से कुछ सायेऔर सब कुछ उतार लाते हैं
तुम यहाँ क्यों खड़े हो मुद्दत सेगाड़ी जाती है अदल<brref>न्याय<br/ref>की मीज़ान>जिस का हिस्सा उसी को मिलता है
ये तुम्हारी थकी-थकी भेड़ें<br>रात जिन को ज़मीं के सीने पर<br>सुबह होते उँडेल देती है<br>मंडियों दफ़्तरों मिलों की तरफ़<br>हाँक देती ढकेल देती है<br>रास्ते में ये रुक नहीं सकतीं<br>तोड़ के घुटने झुक नहीं सकतीं<br><br>तुम यहाँ क्यों खड़े हो मुद्दत से
इन से तुम क्या तवक़्क़ो रखते हो<br>ये तुम्हारी थकी-थकी भेड़ेंभेड़िया इन रात जिन को ज़मीं के साथ चलता सीने परसुबह होते उँडेल देती है<br><br>मंडियों दफ़्तरों मिलों की तरफ़हाँक देती ढकेल देती हैरास्ते में ये रुक नहीं सकतींतोड़ के घुटने झुक नहीं सकतीं
तकते रहते इन से तुम क्या तवक़्क़ो रखते हो उस सड़क की तरफ़<br>दफ़्न जिस में कई कहानियाँ हैं<br>दफ़्न जिस में कई जवानियाँ हैं<br>जिस पे इक भेड़िया इन के साथ भागी फिरती हैं<br>ख़ाली जेबें भी और तिजोरियाँ भी<br><br>चलता है
जाने किस का है इंतज़ार तुम्हें<br><br>तकते रहते हो उस सड़क की तरफ़दफ़्न जिस में कई कहानियाँ हैंदफ़्न जिस में कई जवानियाँ हैंजिस पे इक साथ भागी फिरती हैंख़ाली जेबें भी और तिजोरियाँ भी
मुझ को देख़ो के मैं वही तो हूँ<br>जिस को कोड़ों की छाँव में दुनिया<br>बेचती भी ख़रीदती भी थी<br><br>जाने किस का है इंतज़ार तुम्हें
मुझ को देख़ो के मैं वही तो हूँ<br>जिस को खेतों कोड़ों की छाँव में ऐसे बाँधा था<br>दुनियाजैसे मैं उन का एक हिस्सा था<br>खेत बिकते तो मैं बेचती भी ख़रीदती भी बिकता था<br><br>थी
मुझ को देख़ो के मैं वही तो हूँ<br>कुछ मशीनें बनाई जब मैंने<br>उन मशीनों के मालिकों ने मुझे<br>बे-झिझक उनमें जिस को खेतों में ऐसे झौंक दिया<br>बाँधा थाजैसे मैं कुछ नहीं हूँ ईंधन हूँ<br><br>उन का एक हिस्सा थाखेत बिकते तो मैं भी बिकता था
मुझ को देखो देख़ो के मैं थका हारा<br>वही तो हूँफिर रहा कुछ मशीनें बनाई जब मैंनेउन मशीनों के मालिकों ने मुझेबे-झिझक उनमें ऐसे झौंक दियाजैसे मैं कुछ नहीं हूँ ईंधन हूँ युगों से आवारा<br><br>
तुम यहाँ से हटो तो आज की रात<br>सो रहूँ मुझ को देखो के मैं इसी चबूतरे पर<br><br>थका हाराफिर रहा हूँ युगों से आवारा
तुम यहाँ से हटो ख़ुदा के लिये<br><br>तो आज की रातसो रहूँ मैं इसी चबूतरे पर
जाओ वो विएतनाम तुम यहाँ से हटो ख़ुदा के जंगल<br>उस के मस्लूब शहर ज़ख़्मी गाँव<br>जिन को इंजील पड़ने वालों ने<br>रौंद डाला है फूँक डाला है<br><br>लिये
जाओ वो विएतनाम के जंगलउस के मस्लूब<ref>सूली पर चढ़ाए गए</ref> शहर ज़ख़्मी गाँवजिन को इंजील<ref>बाइबल</ref> पढ़ने वालों नेरौंद डाला है फूँक डाला हैजाने कब से पुकारते हैं तुम्हें<br><br>
जाओ इक बार फिर हमारे लिये<br>तुम को चढ़ना पड़ेगा सूली पर<br><br><br>
फ़क़त=सिर्फ़ ; पयम्बर=अवतार ; तखय्युल=कल्पना ; किज़्ब= झूठ ; रुख=तरफ़ ; नूर=ज्योती ; पारसा=पवित्र ; रहबर=पथ-प्रदर्शक ; रहज़न=लुटेरे ; ख़ारिशज़दा=खुजली से पीडित ; बे-नियाज़ाना=निश्चिन्त ; अदल=न्याय ; खयानत=बेइमानी ; मस्लूब=सलीब पर चढाये गये ; इंजील=बाइबल{{KKMeaning}}<br><br/poem>