Changes

साँचा:KKPoemOfTheWeek

163 bytes removed, 14:08, 7 मार्च 2015
<div style="background:#eee; padding:30px10px"><div style="background:#dddtransparent; width:10095%; height:450px; overflow:auto; border:3px 0px inset #aaa; padding:10px">
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">रँग गुलाल खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
<divstyle="text-align: center;">रचनाकार: [[कुमार रवींद्रत्रिलोचन]]
</div>
<poemdiv style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">रँग गुलाल खुले तुम्हारे लिए हृदय केद्वारऔर फाग के बोल सुहानेबुनें इन्हीं से संवत्सर के ताने-बानेअपरिचित पास आओ
ऋतु-प्रसंग यह मंगलमय होआँखों में सशंक जिज्ञासाहर प्रकार सेमिक्ति कहाँ, है अभी कुहासादूर रहें दुखजहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैंस्तम्भ शेष भय की परिभाषाहिलो-दर्द-दलिद्दरमिलो फिर एक डाल केसदा द्वार खिलो फूल-से, मत अलगाओ
कभी किसी कोसबमें अपनेपन की मायाकष्ट न दें जाने-अनजाने अग्नि-पर्व यहरंगपर्व यह सच्चा होवेपाप-ताप सबमन के-साँसों के यह धोवे हमें न व्यापेंकभी स्वार्थ के कोई बहाने यह मौसम हैराग-द्वेष के परे नेह काहाँ, विदेह होने काहै यह पर्व देह का साँस हमारीइस असली सुख को पहचाने अपने पन में जीवन आया </poemdiv>
</div></div>