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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">स्त्री वेद पढ़ती हैखुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
<divstyle="text-align: center;">रचनाकार: [[दिनकर कुमारत्रिलोचन]]
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<poemdiv style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">स्त्री वेद पढ़ती हैउसे मंच से उतार देता हैधर्म का ठेकेदारकहता है—जाएगी वह नरक खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वारअपरिचित पास आओ
यह कैसा वेद आँखों में सशंक जिज्ञासामिक्ति कहाँ, हैअभी कुहासाजिसे पढ़ नहीं सकती स्त्रीजहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैंजिस वेद को रचा थास्तम्भ शेष भय की परिभाषास्त्रियों ने भीहिलो-मिलो फिर एक डाल केजो रचती हैमानव समुदाय कोउसके लिए कैसी वर्जना हैखिलो फूल-से, मत अलगाओ
या साज़िश हैयुग-युग से धर्म सबमें अपनेपन की दुकानमायाचलाने वालों की साज़िश हैबनी रहे स्त्री बांदीजाहिल और उपेक्षिताडूबी रहे अंधविश्वासोंव्रत-उपवासों अपने पन मेंउतारती रहे पति परमेश्वरकी आरती औरख़ून चूसते रहे सब उसका अरुंधतियों को नहींरोक सकेंगे निश्चलानंदवह वेद भी पढ़ेगीऔर रचेगीनया वेद । जीवन आया </poemdiv>
</div></div>