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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">जब आततायी मारे जाते हैंखुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
<divstyle="text-align: center;">रचनाकार: [[प्रियदर्शनत्रिलोचन]]
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<poemdiv style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">एकखुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वारअपरिचित पास आओ
धूप धम-धम नगाड़ा बजा रही आँखों में सशंक जिज्ञासामिक्ति कहाँ, हैअभी कुहासाबन्दूकें ताने जहाँ खड़े हैं पेड़, पाँव जड़े हैंसन्नाटे को सूँघ रही है उमसाई हुई जासूस हवास्तम्भ शेष भय की परिभाषानदी यहाँ से वहाँ तकहिलो-मिलो फिर एक डाल केबारूद की तरह बिछी हुई हैआततायियों खिलो फूल-से युद्ध के लिए तैयार है जंगल, मत अलगाओ
दोसबमें अपनेपन की माया आततायियों का इन्तज़ार करोतुम्हें मालूम है, वे आएँगेतुम्हें मालूम है, वे कहर ढाएँगेतुम्हारी पीठ पर हैं उनकी चाबुक के ख़ुरदरे निशानतुम्हारे पेट पर है उनके बूटों के रगड़े जाने से बने दाग़तुम्हारी यादों अपने पन में है एक जमा हुआ ख़ौफ़तुम्हारे दिल में है एक धधकता हुआ गुस्साआततायियों का इन्तज़ार करोतुम्हें मालूम है,एक दिन वे मारे जाएँगे ।तुम्हारे हाथों । तीन मरना-मारना दोनों बुरा हैन अत्याचार करो, न अत्याचार सहोलेकिन जितना पुराना यह सबक हैउतनी ही पुरानी यह सच्चाईकि अत्याचार भी बचा हुआ है, आततायी भी बचे हुए हैंकि यह दुनिया डरती रहती हैमरती रहती हैमरने का शोक भी करती रहती है ।लेकिन जब आततायी मारे जाते हैं,कोई शोक नहीं करता । चार सबसे मुश्किल होता है आततायियों को पहचानना ।जो सबसे पहले पहचान लिए जाते हैं,वे सबसे कमज़ोर या नासमझ होते हैंवे छोटे और मामूली लोग होते हैंवे मोहरे जिनका सिर कटा कर बचे रहते हैं भविष्य के बादशाह ।असली आततायी मीठा बोलते हैंबोलने से पहले तोलते हैंहाथों में दस्ताने चढ़ाते हैंखंजर में सोना मढ़ाते हैंउन पर अँगुलियों के निशान मिटाते हैंऔर बिल्कुल उस वक़्त जब तुम उनसे पूरी तरह बेख़बर या आश्वस्तअपना अगला क़दम रख रहे होते हो, वे तुम्हें मार डालते हैंतुम जान भी नहीं पाते कि तुम मारे गए होयह ख़ुदक़ुशी है, अख़बार चीख़ते हैंनहीं, यह बीमारी है, सरकार चीखती है।कोई डॉक्टर नहीं बताता कि यह बीमारी क्या है।आततायी बस वादा करता है कि वह बीमारी से भी लड़ेगा । पाँच आततायी से लड़ना आसान नहीं होताइसके कई ख़तरे होते हैंपकड़ लिया जाना, पीटा जाना, सताया जाना, मार दिया जाना--कुछ भी हो सकता है ।ये छोटे ख़तरे नहीं हैं ।लेकिन असली और सबसे बड़ा ख़तरा एक और होता है ।आततायी से लड़ते-लड़तेहम भी हो जाते हैं आततायी ।वह मारा जाता है, शहीद हो जाता हैहम मारे जाते हैं और हमें पता भी नहीं चलता । छह आततायी सबसे ज़्यादा किस चीज़ से डरता है ?इन्साफ़ से।जब इन्साफ़ संदिग्ध हो जाए तो वह सबसे ज़्यादा ख़ुश होता है ।ताउम्र वह इसी कोशिश में जुटा रहता हैकि इन्साफ़ छुपा रहे ।उसकी सारी इनायतें, सारी रियायतें बस इसीलिए होती हैंकि इन्साफ़ की तरह पहचानी जाएँकि चन्द राहतें पैदा करती रहें इन्साफ़ की उम्मीदऔर चलता रहे उसका खेल ।वह जुर्म भी करे तो इन्साफ़ मालूम होऔरजब उसे मारा जाए तो वह इन्साफ़ नहीं जुर्म लगे । सात मैं क़ातिलों के साथ नहीं खड़ा हो सकताहर तरह की हत्या को ख़ारिज करती है मेरी कविताआततायी से मुक़ाबले के लिए आतयायी हो जाना मुझे मंज़ूर नहींलेकिन कोशिश भी करूँ तो आततायी के मारे जाने परकोई अफ़सोस मेरे भीतर नहीं उपजता ।मुझे माफ़ करें ।जीवन आया </poemdiv>
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