भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 14 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
<div style="background:#eee; padding:10px">
 
<div style="background:#eee; padding:10px">
<div style="background: #fff; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px">
+
<div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px">
  
 
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
 
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
नई सदी</div>
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
 
<div style="text-align: center;">
 
<div style="text-align: center;">
रचनाकार: [[ नीलेश रघुवंशी]]
+
रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
</div>
 
</div>
  
<div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>
+
<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
आतंक और बर्बरता से शुरू हुई नई सदी
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
धार्मिक उन्माद और बर्बर हमले बने पहचान इक्कीसवीं सदी के
+
अपरिचित पास आओ
बदा था इक्कीसवीं सदी की क़िस्मत में
+
 
मरते जाना हर दिन बेगुनाह लोगों का
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
हज़ार बरस पीछे ढकेलने का षड्यन्त्र ! आख़िर किया किसने ?
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
किसने ? किसने ढकेला जीवन के बुनियादी हक़ों को हाशिए पर ?
+
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
क्या सचमुच
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
इक्कीसवीं सदी उन्माद और युद्धोन्माद की सदी होगी या
+
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
होगी उजड़ते संसार में एक हरी पत्ती की तरह ?
+
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
 +
 
 +
सबमें अपनेपन की माया
 +
अपने पन में जीवन आया
 
</div>
 
</div>
 
</div></div>
 
</div></div>

19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया