<div style="background:#eee; padding:10px">
<div style="background: #ffftransparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px">
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
प्रिय गान नहीं गा सका तोखुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 0 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>यदि मैं खुले तुम्हारे प्रिय गान नहीं गा सका तोलिए हृदय के द्वारमुझे तुम एक दिन छोड़ चले जाओगेअपरिचित पास आओ
एक बात जानता हूँ मैं कि तुम आदमी होआँखों में सशंक जिज्ञासाजैसे हूँ मैं जो कुछ हूँ तुम वैसे वही होअन्तर है तो भी बड़ी एकता मिक्ति कहाँ, हैअभी कुहासामन यह वह दोनों देखता हैजहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैंभूख प्यास से जो कभी कही कष्ट पाओगेस्तम्भ शेष भय की परिभाषाहिलो-मिलो फिर एक डाल केतो अपने खिलो फूल-से आदमी को ढूंढ़ सुना आओगे, मत अलगाओ
प्यार का प्रवाह जब किसी दिन आता हैआदमी समूह में अकेला अकुलाता हैकिसी को रहस्य सौंप देता हैउसका रहस्य आप लेता हैऎसे क्षण प्यार सबमें अपनेपन की ही चर्चा करोगे औरअर्चा करोगे और सुनोगे सुनाओगे विघ्न से विरोध से कदापि नहीं भागोगेविजय के लिए सुख-सेज तुम त्यागोगेक्योंकि नाड़ियों में वही रक्त हैजो सदैव जीवनानुरक्त हैतुमको जिजीविषा उठाएगी, चलाएगी,बढ़ाएगी उसी का गुन गाओगे, गवाओगे मायारचनाकाल : जनवरी, 1957, ’कवि’ अपने पन में प्रकाशित जीवन आया
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