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प्रिय गान नहीं गा सका तो</div>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
 
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
यदि मैं तुम्हारे प्रिय गान नहीं गा सका तो
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
मुझे तुम एक दिन छोड़ चले जाओगे
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अपरिचित पास आओ
  
एक बात जानता हूँ मैं कि तुम आदमी हो
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
जैसे हूँ मैं जो कुछ हूँ तुम वैसे वही हो
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
अन्तर है तो भी बड़ी एकता है
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
मन यह वह दोनों देखता है
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
भूख प्यास से जो कभी कही कष्ट पाओगे
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
तो अपने से आदमी को ढूंढ़ सुना आओगे
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
प्यार का प्रवाह जब किसी दिन आता है
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सबमें अपनेपन की माया
आदमी समूह में अकेला अकुलाता है
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अपने पन में जीवन आया
किसी को रहस्य सौंप देता है
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उसका रहस्य आप लेता है
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ऎसे क्षण प्यार की ही चर्चा करोगे और
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अर्चा करोगे और सुनोगे सुनाओगे
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विघ्न से विरोध से कदापि नहीं भागोगे
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विजय के लिए सुख-सेज तुम त्यागोगे
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क्योंकि नाड़ियों में वही रक्त है
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जो सदैव जीवनानुरक्त है
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तुमको जिजीविषा उठाएगी, चलाएगी,
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बढ़ाएगी उसी का गुन गाओगे, गवाओगे
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रचनाकाल : जनवरी, 1957, ’कवि’ में प्रकाशित
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया