<div class='box' style="background-color:#DD5511eee;width:100%; alignpadding:center10px"><div class='boxtop'><div></div></div><div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>''' सप्ताह की कविता'''</div><div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBBtransparent;borderwidth:1px solid #DD551195%;'><!----BOX CONTENT STARTS------> '''शीर्षकheight: '''निडर औरतें<br> 450px; '''रचनाकार:''' [[शुभा]] <pre style="overflow:auto;heightborder:21em0px inset #aaa;padding:10px">हम औरतें चिताओं को आग नहीं देतींक़ब्रों पर मिट्टी नहीं देतींहम औरतें मरे हुओं को भी बहुत समय जीवित देखती हैं
सच तो ये है हम मौत को<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">लगभग झूठ मानती हैंऔर बिछुड़ने का दुख हमख़ूब समझती हैंऔर बिछुड़े हुओं को हमखूब याद रखती हैंवे लगभग सशरीर हमारीदुनियाओं में चलते-फिरते हैंखुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
हम जन्म देती हैं और इसको<div style="text-align: center;">कोई इतना बड़ा काम नहीं मानतींरचनाकार: [[त्रिलोचन]]कि हमारी पूजा की जाए</div>
ज़ाहिर है जीवन को लेकर हम काफ़ी व्यस्त रहती हैंऔर हमारा रोना<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-गानाshadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वारबस चलता ही रहता हैअपरिचित पास आओ
हम न तो मोक्ष की इच्छा कर पाती हैंआँखों में सशंक जिज्ञासान बैरागी हो पाती हैंमिक्ति कहाँ, है अभी कुहासाहम नरक का द्वार कही जाती जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैंस्तम्भ शेष भय की परिभाषाहिलो-मिलो फिर एक डाल केखिलो फूल-से, मत अलगाओ
सारे ऋषि-मुनि, पंडित-ज्ञानीसबमें अपनेपन की मायासाधु और संत नरक से डरते हैं और हम नरक अपने पन में जन्म देती हैंइस तरह यह जीवन चलता हैआया </prediv><!----BOX CONTENT ENDS------></div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>