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"जीवन / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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20:09, 17 जनवरी 2008 का अवतरण

चाबुक खाये

भागा जाता

सागर-तीरे

मुँह लटकाये

मानो धरे लकीर

जमे झागों की--

रिरियाता कुत्ता यह

पूँछ लड़खड़ाती टाँगों के बीच दबाये ।


कटा हुआ

जाने-पहचाने सब कुछ से

इस सूखी तपती रेती के विस्तार से,

और अजाने-अनपहचाने सब से

दुर्गम, निर्मम, अन्तहीन

उस ठण्डे पारावार से !