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बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
जाँ लटक रये अनार बाग लै चलो रे लै चलो रे लिवा चलो रे।
जाँ मोरे अनार बाग लै चलौ रे।
उनके गाल है गुलाब नींबू चोंख चलौ रे। जाँ लटके...
उनकी छतिया अनार बौंड़ी तोड़ चलौ रे। लै चलो रे...
उनकी जंघिया जबरदंग खम्भा भेंट चलौ रे। जाँ लटके...
बामें कछु हरी हरी दूबा जमे रे। लै चलो रै...
जौ नों दिवान साब कौ घोड़ा छूटौ रे।
दूब चरै खुरी धरै गैल करे रे। जाँ लटके...