भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अश्रांत आविर्भाव / इला कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इला कुमार }} सड़क की खुरदरी सतह हो या सुचिक्कन प्रासाद...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=इला कुमार | |रचनाकार=इला कुमार | ||
+ | |संग्रह= जिद मछली की / इला कुमार | ||
}} | }} | ||
23:51, 26 फ़रवरी 2008 का अवतरण
सड़क की खुरदरी सतह हो
या सुचिक्कन प्रासाद का प्रवेशद्वार
कोई बढ़ता चलता है
हर पल पर साथ साथ
निर्जन वनों में
ऊंचे पहाड़ों तले फैली विस्तृत चरागाहों में
शांत उदास सडकों पर
किसी भी अमूर्त से पलांश में
अचानक अवतरित हो उठता है पाशर्व में
भरमाता-सा
अपनी उदार बाहों में भर चौंका देता है
एक दिलासा
मैं हूँ
हर पल तुम्हारे साथ
हर पग को थामता
सूर्य का यह अश्रांत आविर्भाव