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कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 1

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श्री अवधेसके द्वारें सकारंे सकारे गई सुत गोद कै भूपति लै निकसे।
अवलोकि हौं सोच बिमोचनको ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से।।
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