भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वन्दना / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयशंकर प्रसाद |अनुवादक= |संग्रह=क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
<poem>
 
<poem>
 
जयति प्रेम-निधि ! जिसकी करूणा नौका पार लगाती है
 
जयति प्रेम-निधि ! जिसकी करूणा नौका पार लगाती है
जयति महासंगीत ! विष्व-वीणा जिसकी ध्वनि गाती है
+
जयति महासंगीत ! विश्‍व-वीणा जिसकी ध्वनि गाती है
कादम्बनी कृपा की जिसकी सुधा-नीर बरसाती है  
+
कादम्‍िबनी कृपा की जिसकी सुधा-नीर बरसाती है  
भव-कानन की धरा हरित हो जिससे षोभा पाती है
+
भव-कानन की धरा हरित हो जिससे शोभा पाती है
  
निर्विकार लीलामय ! तेरी षक्ति न जानी जाती है  
+
निर्विकार लीलामय ! तेरी शक्ति न जानी जाती है  
 
ओतप्रोत हो तो भी सबकी वाणी गुण-गुना गाती है
 
ओतप्रोत हो तो भी सबकी वाणी गुण-गुना गाती है
गद्गद्-हृदय-निःसृता यह भी वाणी दौड़ी जाती है
+
गदगद्-हृदय-निःसृता यह भी वाणी दौड़ी जाती है
 
प्रभु ! तेरे चरणों में पुलकित होकर प्रणति जनाती है
 
प्रभु ! तेरे चरणों में पुलकित होकर प्रणति जनाती है
 
</poem>
 
</poem>

12:23, 2 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण

जयति प्रेम-निधि ! जिसकी करूणा नौका पार लगाती है
जयति महासंगीत ! विश्‍व-वीणा जिसकी ध्वनि गाती है
कादम्‍िबनी कृपा की जिसकी सुधा-नीर बरसाती है
भव-कानन की धरा हरित हो जिससे शोभा पाती है

निर्विकार लीलामय ! तेरी शक्ति न जानी जाती है
ओतप्रोत हो तो भी सबकी वाणी गुण-गुना गाती है
गदगद्-हृदय-निःसृता यह भी वाणी दौड़ी जाती है
प्रभु ! तेरे चरणों में पुलकित होकर प्रणति जनाती है