Changes

गान / जयशंकर प्रसाद

105 bytes added, 07:13, 3 अप्रैल 2015
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद|संग्रह=कानन-कुसुम / जयशंकर प्रसाद}} {{KKCatKavita}} <poem>
जननी जिसकी जन्मभूमि हो; वसुन्धरा ही काशी हो
 विश्व स्वदेश, भ्रातु भ्रातृ मानव हों, पिता परम अविनाशी हो 
दम्भ न छुए चरण-रेणु वह धर्म नित्य-यौवनशाली
 
सदा सशक्त करों से जिसकी करता रहता रखवाली
 
शीतल मस्तक, गर्म रक्त, नीचा सिर हो, ऊँचा कर भी
 
हँसती हो कमला जिसके करूणा-कटाक्ष में, तिस पर भी
 
खुले-किवाड़-सदृश हो छाती सबसे ही मिल जाने को
 
मानस शांत, सरोज-हृदय हो सुरभि सहित खिल जाने को
 
जो अछूत का जगन्नाथ हो, कृषक-करों का ढृढ हल हो
 
दुखिया की आँखों का आँसू और मजूरों का कल हो
 
प्रेम भरा हो जीवन में, हो जीवन जिसकी कृतियों में
 
अचल सत्य संकल्प रहे, न रहे सोता जागृतियों में
 
ऐसे युवक चिरंजीवी हो , देश बना सुख-राशी हो
 
और इसलिये आगे वे ही महापुरुष अविनाशी हो
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
2,887
edits