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तुम (हाइकु) / अशोक कुमार शुक्ला
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11:31, 4 मई 2015
मायूसी हारी
(2)
हरारत है
आलिंगन तुम्हारा
पिघला तन
(3)
तेरी आहट
गुनगुनी धूप सी
माह पूस की
(4)
तुम हंसे तो
बिजली सी चमकी
बादर झरे
</poem>
Dr. ashok shukla
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