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लेखक: [[अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध]]}}{{KKPrasiddhRachna}}{{KKCatBaalKavita}}<poem>ज्यों निकल कर बादलों की गोद सेथी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ीसोचने फिर-फिर यही जी में लगी,आह! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी?
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~देव!! मेरे भाग्य में क्या है बदा,मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में?या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी,चू पडूँगी या कमल के फूल में?
ज्यों निकल कर बादलों की गोद से<br>बह गयी उस काल एक ऐसी हवावह समुन्दर ओर आई अनमनीथी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी<br>सुन्दर सीप का मुँह था खुलासोचने फिर-फिर यही जी वह उसी में लगी,<br>आह ! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी ?<br><br>जा पड़ी मोती बनी।
देव मेरे भाग्य में क्या है बदा,<br>मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में ?<br>या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी,<br>चू पडूँगी या कमल के फूल में ?<br><br> बह गयी उस काल एक ऐसी हवा<br>वह समुन्दर ओर आई अनमनी<br>एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला<br>वह उसी में जा पड़ी मोती बनी ।<br><br> लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते<br>जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर<br>किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें<br>बूँद लौं कुछ और ही देता है कर ।<br>कर।<br/poem>
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