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अक्कड़ मक्कड़, धुल धूल में धक्कड़,
दोनों मूरख, दोनों अक्खड़,
हाट से लौटे, ठाट से लौटे,
एक साथ एक बाट से लौटे |लौटे।
बात बात में बात ठन गई,
बांह उठी और मूछ तन गई,
इसने उसकी गर्दन भींची
उसने इसकी दाढ़ी खींची|खींची।
अब वह जीता, अब यह जीता
मन का राजम कर्रा-कक्कड़;
बढ़ा भीड़ को चीर-चार कर
बोला ‘ठहरो’ गला फाड़ कर|कर।
अक्कड़ मक्कड़ धुल में धक्कड़
दोनों जैसे पानी-पानी;
लड़ना छोड़ा अलग हट गए,
लोग शर्म से गले, छंट गए|गए।
सबको नाहक लड़ना अखरा,
ताकत भूल गई सब नखरा;
गले मिले तब अक्कड़ मक्कड़
ख़त्म हो गया धुल धूल में धक्कड़!
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