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शान्त
मेर थके-हारे दिल ।दिल।
मेरी अगरबत्ती के धुएँ के
पंचमुख गुड़हल के फूल को
बांधते रहो नीरव--नीरव—
साँझ के सन्नाटे में मैं
सका तो एक धुन
निःशब्द गाऊँगा ।गाऊँगा।
फिर अभी तो वह आयेगी आएगी:
रागों की एक आग एक शतजिह्व
लहलह सब पर छा जायेगी ।जाएगी।
दिल, साँझ, शम, कमरा, क्लान्ति
डोरे तोड़ सभी
अपनी ही लय में बहायेगी बहाएगी:
फूल मुक्त,
धरा बंध जायेगी ।जायेगी।
अपने निवेदना का धुआँ बन
अपनी अगरबत्ती-सा
मैं चुक जाऊँगा ।जाऊँगा।
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