Changes

सदस्य:Sumitkumar kataria

2,178 bytes removed, 14:55, 7 मई 2008
''आजकल कोश पर क्या कर रहा हूँ?''
आजकल, बकौल जनविजय जी, मुक्तिबोध को बिना पूछे चांद का मुँह टेढ़ा कर रहा हूँ। असल में आजकल अज्ञेयकी 'कितनी नावों में कितनी बार' टाइप कर रहा हूँ, उसे लायब्रेरी को लौटाने की जल्दी है। बाद में मुक्तिबोधकी किताब पूरी करूँगा।*******अरे सुमित जी ! भैया, आप इतने अच्छे ढंग से चांद का मुँह टेढ़ा कर रहे हैं कि कुछ वर्षों बाद लोग आप को 'आप' ही नहीं 'बाप' कहना शुरू कर देंगे । रहा। एक साल के लिए सब बंद। इस उम्र एक साल में यह हाल है तो आप आगे क्या करेंगे ?ख़ैर, आपकी बात का मान रखते हुए आगे 'तुम' ही कहूंगा । भैया मेरे, शाबास । बहुत अच्छा काम कर रहे हो । मैं तुम्हारे साथ हूँ । कविता भी अगर इम्तिहान में रुचि लेते हो, कविता पढ़ते फ़ेल हो गया तो कविता लिखते भी होंगे ? हिन्दी भाषा की और हिन्दी साहित्य की समझ इसी उम्र में विकसित होकर मज़बूत बनेगी । इसलिए ख़ूब ज़्यादा से ज़्यादा साहित्य पढ़ने की कोशिश करना ।मैं अपना ईहमेशा के लिए बंद। मम्मा-मेल का पता लिख रहा हूँपापा ने रोक लगा दी। माफी चाहूँगा।--[[सदस्य:Sumitkumar kataria|सुमितकुमार कटारिया]]([[सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria|वार्ता]]) १४:५४, कभी भी कोई बात पूछनी हो या कुछ कहना हो तो मुझे लिख सकते हो । तुम जैसे नौजवान हैं तो भारत का भविष्य और हिन्दी का भविष्य उज्जवल है ।अनिल जनविजय, aniljanvijay@gmail.com या अभी लिखना शुरू नहीं किया है ?    ७ मई २००८ (उम्मीद करता हूँ, बल्कि मेरा इस तआरुफ़ को लिखने का इरादा भी यही है, कि अब दूसरे सदस्य मेरे लिए'जी' या 'आप' शब्द का इस्तेमाल नहीं करेंगे।UTC)
Anonymous user