भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मउवति / मोती बी.ए." के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोती बी.ए. |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
− | }} | + | }}{{KKCatBhojpuriRachna}} |
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> |
17:09, 20 मई 2015 के समय का अवतरण
ई मउवति के पोखरा है
एहमें
भाव-विचार के मछरी
मारल जाली सँ
पानी में पँवरत-कुलेल करत
मछरिन के मरले में
बड़ा मजा आवेला,
टटके रीन्हि-पका के
खा लिहला में
बड़ा सवाद आवेला
पोखरा, गड़हा, गुटुही ताल-खाल नदी नारा में
मछरी मारल
टटके रीन्हल-पकावल, खाईल
ईहे नू जिनिगी है
मारऽ-खा, खा-मारऽ
ई क्रम कबो टूटा ना
बनल रहो हर-हमेशा
एही खातिर
पूजा ह, नमाज है
भक्त ह भगवान ह, सृष्टि के विधान-समाज कल्याण ह।
जबले कुल्ही भाव-विचार के मछरी
मारि ना लीहल जइहें सँ
तवले पोखरा के पानी निर्मल नाहीं होई
हमनी का मछरी खा के अमर हो जाइबि जाँ
मउवति मुँह ताकत रहि जाई।
30.05.93