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19:01, 26 जनवरी 2008 के समय का अवतरण
भइया की चिठ्ठी आई है
घर भर की बातें लाई है
पहले लिखा तुम्हे प्यार है
और आगे भाभी बीमार है
छुटकी को अक्सर बुखार है
लिखी अम्मा की पुकार है
आंखे जैसी की तैसी है,
गठिया की हालत वैसी है
अब तो बेटे है ये लगता,
मौत ही जैसे अंतिम हल है
शेष कुशल है
घर में पैसे चार नहीं है
मिलता कही उधार नहीं है
भाई जबसे दिन बिगड़े हैं,
कोई नातेदार नही है।
छोटे का तुम हाल न पूछो
मोटी कितनी खाल न पूछो
अरजी आज नई दे आया,
और अगला इंटरव्यू कल है
शेष कुशल है
बहना का संदेश आया है,
उसने फिर ये कहलाया है।
सामान और नगदी की खातिर,
सास-ससुर ने धमकाया है।
कुछ न कुछ सहते रहते हैं,
ऐसे दिन कटते रहते हैं।
ये सब छोड़ो अपनी लिखना,
बीत रहे कैसे छिन-पल हैं।
शेष कुशल है।
बप्पा खुद से जूझ रहे हैं,
कब आओगे पूछ रहे हैं।
लिख दो ख्याल रखे सेहत का,
मिनट-मिनट पर टोक रहे हैं।
आखिर में बस इतना कहना,
तुम घर की चिन्ता मत करना.
मजबूरी ढ़ोने का हममे,
बाकी अब भी काफी बल है।
शेष कुशल है।