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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कहाँ के चँदवा कहाँ चलल जाय, मोरे परान हरी।
कहाँ के दुलहा गवन<ref>गौना</ref> कयले जाय, मोरे परान हरी॥1॥
पुरुब के चँदवा पछिम चलल जाय, मोर परान हरी।
कवन पुर के दुलहा गवना कयले जाय, मोर परान हरी॥2॥
सभवा बइठल बाबा मिनती<ref>विनती</ref> करे, मोर परान हरी।
दिन दस रहे देहु<ref>रहने दो</ref> धियवा हमार, मोर परान हरी॥3॥
जब तोरा अहो ससुर धियवा पियार, मोर परान हरी।
काहे लागि तिलक चढ़वलऽ हमार, मोर परान हरी॥4॥
शब्दार्थ
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