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तुम रोशनी / शंकरानंद

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तुमने तो मौसम को बदल दिया है
चुपके-चुपके बिना बताए ।
 
तब
असंख्य बार मैंने गिनना चाहा
लेकिन तारे कभी उँगली पर नहीं आए
 
हमेशा बाहर रहे और उनका टिमटिमाना
धूल ने भी अपने पानी में देखा
 
बच्चे जब-जब थके
बैठ गए अगली रात के इंतज़ार में और
फिर निराश हुए
ये तारे फिर नहीं गिने गए
 
ये तारे जहाँ रहे
कभी झाँसे में नहीं आए किसी के
 
वरना जिनके पास ताक़त है
उनकी जेबों में टिमटिमाते रहते ।
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