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लेखिका: [[सुभद्राकुमारी चौहान]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=सुभद्राकुमारी चौहान]]}}{{KKCatKavita}}{{KKPrasiddhRachna}}<poem>सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,<br>बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,<br>गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,<br>दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।<br><br>
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली लक्ष्मी थी या दुर्गा थी,<br>लक्ष्मीबाई नाम, पिता वह स्वयं वीरता की वह संतान अकेली थीअवतार,<br>नाना देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के सँग पढ़ती थी वहवार, नाना के सँग खेली थीनकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,<br>बरछी ढालसैन्य घेरना, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।<br><br>दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।
वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं हुई वीरता की अवतारवैभव के साथ सगाई झाँसी में,<br>देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वारब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,<br>नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकारराजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,<br>सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।<br><br>सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।
महाराष्टर्-कुल-देवी उसकी भी आराध्य चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों मेंउजियाली छाई,<br>ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी मेंकिंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,<br>राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी तीर चलाने वाले कर मेंउसे चूड़ियाँ कब भाई, रानी विधवा हुई,<br><br>हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में उजियाली छाईहरषाया,<br>किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाईराज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,<br>तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाईफ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,<br>रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।<br><br>लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
निसंतान मरे राजाजी अश्रुपूर्ण रानी शोक-समानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषायाअनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,<br>राज्य हड़प करने का उसने व्यापारी बन दया चाहता था जब यह अच्छा अवसर पायाभारत आया,<br>फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहरायाडलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,<br>लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।<br><br>राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों छिनी राजधानी दिल्ली की माया,<br>लखनऊ छीना बातों-बात, व्यापारी बन दया चाहता कैद पेशवा था जब यह भारत आयाबिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,<br>डलहौज़ी ने पैर पसारेउदैपुर, अब तो पलट गई कायातंजौर,<br>सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात? राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।<br><br>जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
रानी दासी बनीबंगाले, बनी यह दासी अब महरानी मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
छिनी राजधानी दिल्ली कीरानी रोयीं रनिवासों में, लखनऊ छीना बातों-बातबेगम ग़म से थीं बेज़ार,<br>कैद पेशवा था बिठुर मेंउनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार, हुआ नागपुर का भी घात,<br>उदैपुरसरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?<br>जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।<br><br>'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
बंगाले, मद्रास आदि यों परदे की भी तो वही कहानी इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
रानी रोयीं रिनवासों कुटियों मेंभी विषम वेदना, बेगम ग़म से थीं बेज़ारमहलों में आहत अपमान,<br>उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते वीर सैनिकों के बाज़ारमन में था अपने पुरखों का अभिमान,<br>सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबारनाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,<br>'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।<br><br>बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमानने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,<br>वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमानयह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,<br>नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामानझाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,<br>बहिन छबीली मेरठ, कानपुर,पटना ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।<br><br>भारी धूम मचाई थी,
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,<br>यह इस स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थीमहायज्ञ में कई वीरवर आए काम,<br>झाँसी चेतीनाना धुंधूपंत, दिल्ली चेतीताँतिया, लखनऊ लपटें छाई थीचतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,<br>मेरठअहमदशाह मौलवी, कानपूरठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम, पटना ने भारी धूम मचाई थी,<br><br>भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
इस स्वतंत्रता महायज्ञ इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में कई वीरवर आए काम,<br>नाना धुंधूपंत, ताँतियाजहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,<br>अहमदशाह मौलवीलेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिरामआगे बढ़ा जवानों में,<br>भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।<br><br>रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
इनकी गाथा छोड़रानी बढ़ी कालपी आई, चले हम झाँसी के मैदानों मेंकर सौ मील निरंतर पार,<br>जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों मेंघोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,<br>लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचायमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार, आगे बड़ा जवानों में,<br>विजयी रानी ने तलवार खींच लीआगे चल दी, हुया द्वन्द्ध असमानों में।<br><br>किया ग्वालियर पर अधिकार।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
रानी बढ़ी कालपी विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आईथी, कर सौ मील निरंतर पार,<br>घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधारअबके जनरल स्मिथ सम्मुख था,<br>यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर उसने मुहँ की खाई रानी से हारथी,<br>विजयी काना और मंदरा सखियाँ रानी आगे चल दीके संग आई थी, किया ग्वालियर पर अधिकार।<br><br>युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
विजय मिलीतो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थीकिन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,<br>अबके जनरल स्मिथ सम्मुख घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, उसने मुहँ की खाई थीइतने में आ गये सवार,<br>काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थीएक,<br>युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।<br><br>शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पारगई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,<br>किन्तु सामने नाला आयामिला तेज से तेज, था तेज की वह संकट विषम अपारसच्ची अधिकारी थी,<br>घोड़ा अड़ाअभी उम्र कुल तेइस की थी, नया घोड़ा थामनुज नहीं अवतारी थी, इतने में आ गये अवार,<br>रानी एकहमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।<br><br>
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>थी॥
जाओ रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थीयाद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,<br>मिला तेज से तेजयह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,<br>अभी उम्र कुल तेइस की थीहोवे चुप इतिहास, मनुज नहीं अवतारी थीलगे सच्चाई को चाहे फाँसी,<br>हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थीहो मदमाती विजय,<br><br>मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br> जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,<br>यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,<br>होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,<br>हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।<br><br> तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,<br>बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br>थी॥<br/poem>