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कुछ तो होगा / पृथ्वी पाल रैणा

912 bytes removed, 20:01, 4 अक्टूबर 2015
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यादों से बात नहीं बनतीकुछ दर्द निगोड़े ऐसे तो होगा जिसके कारण पेश हैं,जीना दूभर कर देते हैं।सहना भी मुश्किल होता है, कहकर भी बात नहीं बनती।दुश्वारियाँपतझड़ बेवजह तो ज़िन्दगी में सूखे पत्तों का पेचोख़म होते नहीं।कब साथ दिया है पेड़ों ने,जो बीत गए उन लम्हों कीयादों से बात क्या हुआ होगा यहाँ कि रंगतें निखरी नहीं बनती।जो लडिय़ां बिखर गईं उनकेसब मोती उजड़ जाने किधर गए,किससे यह भूल हुई कैसे,समझे भी बात नहीं बनती।अपने हाथों में जादू था,के लिए तो हम सारी उम्र यही समझे,बनने से पहले उजड़ गईबस्ती से बात नहीं बनती।फ़सल बोते नहीं।किस सोच किश्तियाँ मझधार में जाने उलझ गएयों ही पलट जाती रहेंगीनाविकों के हाथ जो पतवार हाथ से फिसल गई,पर होते नहीं।अब टूटी किश्ती को लेकर लहरों हो भले बिफरी फिज़ां या तल्ख़ियां हालात में बात नहीं बनती।कहने में सुनना भूल सध गए, जो फिर तवाज़ुन वे कभी खोते नहीं।सब कहा सुना बेकार हुआ।आखिर अब बात यहाँ ठहरी, कहने से बात जब मुहब्बत ही नहीं बनती।जीवन चाहे जैसा भी हो,अपना ही रचा रचाया है,अब सिर धुनने तो अज़ल से क्या होगा,कैसा गिलारोने से बात नहीं बनती।जो छूट गया सो छूट गयाजो नहीं हुआ सो नहीं हुआ,आगे भी जाने क्या होगा,चिन्ता से बात नहीं बनती।गुजऱने पर गैऱ के तो बेवजह रोते नहीं।
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