"तिब्बत देश / अनिल कुमार सिंह" के अवतरणों में अंतर
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09:45, 29 जून 2008 का अवतरण
आम भारतीय जुलूसों की तरह ही
गुज़र रहा था उनका हुजूम भी
‘तिब्बत देश हमारा है’ के नारे
लगाता हुआ हिंदी में
वे तिब्बती थे यक़ीनन
लेकिन यह विरोध प्रदर्शन का
विदेशी तरीक़ा था शायद
नारों ने भी बदल ली थी
अपनी बोली
एक भिखारी देश के नागरिक को
कैसे अनुभव करा सकते थे भला वे
बेघर होने का संताप?
अस्सी करोड़ आबादी के कान पर
जुओं की तरह रेंग रहे थे वे
पकड़कर फेंक दिए जाने की
नियति से बद्ध
दलाईलामा तुम्हारी लड़ाई का
यही हश्र होना था आख़िर!
दर-बदर होने का दुख उन्हें भी है
जो गला रहे हैं अपना हाड़
तिब्बत की बर्फानी ऊँचाइयों पर
उन्हें दूसरी बोली नहीं आती
और इसीलिए उनकी आहों में
दम है तुमसे ज़्यादा
दलाईलामा!
वे मुहताज नहीं है अपनी लड़ाई के लिए
तुम्हारे या टुकड़े डालनेवाले किन्हीं
साम्राज्यवादी शुभचिन्तकों के
वे लड़ रहे हैं तिब्बत के लिए
तिब्बत में रहकर ही जो
धड़कता है उनकी पसलियों में
तुम्हारे जैसा ही
कोई क्या बताएगा उन्हें
बेघर होने का संताप दलाईलामा!